नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने आज बरसों से चली आ रही लिंग भेद के चलते एक मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक की परंपरा को गलत ठहराते हुए अब सभी को प्रवेश की अनुमति प्रदान कर दी है। अदालत के इस फैसले से तकरीबन ने 800 साल पुरानी परंपरा को खत्म कर दिया है। अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि महिलाओं को पुरुषों से कमतर नहीं आंका जा सकता। एक तरफ उन्हें देवी के रूप में पूजा जाता है और दूसरी तरफ उन पर प्रतिबंध हैं। भगवान से रिश्ते को बायोलॉजिकल या सायकोलॉजिकल कारणों से परिभाषित नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि आज सीजेआई दीपक मिश्रा ने कहा कि धर्म एक है, गरिमा और पहचान भी एक हैं। अय्यप्पा कुछ अलग नहीं हैं, जो नियम जैविक और शारीरिक प्रक्रियाओं के आधार पर बने हैं। वे संवैधानिक परीक्षा में पास नहीं हो सकते। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 4-1 के बहुमत से आया है। जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग फैसला दिया है।
शुक्रवार को भारत में महिलाओं के अधिकार के लिए बड़ा दिन बनाते हुए सीजेआइ ने कहा, ‘सबरीमाला मंदिर की परंपरा संवैधानिक नहीं है। सबरीमाला की पंरपरा को धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं माना जा सकता।’ वहीं फैसला सुनाते हुए जस्टिस रोहिंगटन नरीमन ने कहा कि मंदिर में महिलाओं को भी पूजा का समान अधिकार, यह मौलिक अधिकार है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पूजा से इंकार करना महिलाओं की गरिमा से इंकार करना है। उन्होंने सवाल किया, क्या संविधान महिलाओं के लिए अपमानजनक बात को स्वीकार कर सकता है?
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर फैसले में अपना पक्ष सुनाते हुए जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा कि इस मुद्दे का असर दूर तक जाएगा। धार्मिक परंपराओं में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। अगर किसी को किसी धार्मिक प्रथा में भरोसा है, तो उसका सम्मान होना चाहिए, क्योंकि ये प्रथाएं संविधान से संरक्षित हैं। समानता के अधिकार को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के साथ ही देखना चाहिए और कोर्ट का काम प्रथाओं को रद करना नहीं है।
केरल के देवस्वओम मंत्री कडकमपल्ली सुरेन्द्रन ने सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले का शुक्रवार को स्वागत करते हुए इसे ‘ऐतिहासिक करार दिया। वहीं मंदिर के प्रमुख पुजारी ने इसे ”निराशाजनक बताया। भगवान अय्यप्पा स्वामी मंदिर का प्रशासनिक कामकाज संभालने वाले त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड का कहना है कि वह फैसले का पालन करने के लिए बाध्य है।हालांकि अदालत के इस फैसले के बाबत बात करते हुए ट्रावणकोर देवस्वॉम बोर्ड (TDB) के अध्यक्ष ए. पद्मकुमार ने कहा “हम अन्य धार्मिक प्रमुखों से समर्थन हासिल करने के बाद पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे।
ज्ञात हो कि केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकती थीं। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे। ऐसे में युवा और किशोरी महिलाओं को मंदिर में जाने की इजाजत नहीं है। दरअसलसबरीमाला मंदिर में हर साल नवम्बर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं, बाकि पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज़्यादा भक्त पहुंचते हैं।