नई दिल्ली। तीन तलाक बिल को लेकर सत्तरूढ़ दल भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच जारी रस्साकशी के बीच आज आखिरकार मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को रोकने के मकसद से लाया गया ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2018’ लोकसभा में पास हो गया। हालांकि, इसके कुछ प्रावधानों का विरोध करते हुए कांग्रेस ने इसे संयुक्त प्रवर समिति में भेजने की मांग की तो सत्तारूढ़ भाजपा ने इसे मुस्लिम महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए उठाया गया ऐतिहासिक कदम करार दिया। संशोधनों पर वोटिंग से पहले कांग्रेस और एआईएडीएमके ने सदन से वॉकआउट किया। इसके बाद सदन में वोटिंग हुई।
गौरतलब है कि लोकसभा में तीन तलाक बिल पर चर्चा के दौरान भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि यह इस्लाम धर्म से संबंधित मामला नहीं, यह एक सामाजिक कुरीति है। इसी तरह से सती प्रथा और बाल विवाह को भी खत्म किया गया था। इस्लामिक देशों ने दशकों पहले तीन तलाक की कुरीति को खत्म कर दिया है। साथ ही भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने भी कहा कि समानता के अधिकार के तहत तीन तलाक को खत्म की जरूरत। सीआरपीसी 125 के तहत महिलाएं गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी हैं।
वहीं लेखी ने यह भी कहा कि तीन तलाक का विरोध करने वालों से पूछना चाहती हूं कि कुरान के किस सूरा में तलाक ए बिद्दत का जिक्र है। ये महिला बनाम पुरुष का नहीं बल्कि मानव अधिकार का मसला है। कांग्रेस तलाक के अधिकार की बात करती है और हम शादी के अधिकार की बात करते हैं। हिंदू विवाह कानून, पारसी विवाह कानून और मुस्लिम विवाह कानून के बीच तुलना करना गलत है। अगर इस पर चर्चा करनी है तो समान नागरिक संहिता पर हम सब एक साथ बैठें। निकाह पूरे समाज के सामने होता है, लेकिन एक वाट्सएप, एक एसएमएस, एक कॉल और शादी खत्म, ये कैसा कानून है। गुमराह करने वाले रवैये की वजह से अध्यादेश लाना पड़ा।
जबकि इस मामले में कांग्रेस की तरफ से पक्ष रखते हुए कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने शायरा बानो केस का जिक्र करते हुए कहा कि महिला का सवाल है तो हमें कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन मुंह में राम बगल में छुरी वाली बात हमें मंजूर नहीं। उन्होंने तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाने का विरोध करते हुए कहा कि कांग्रेस ने 2017 के विधेयक को लेकर जो चिंताएं जताई थी उसका ध्यान नहीं रखा गया। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में रखा जाए। हमारी मांग है कि इस बिल को ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी को भेजा जाए।
जिस पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में कहा ‘संसद तीन तलाक पीड़ितों की आवाज सुने। राजनीतिक कारणों से बिल को रोकना गलत है। 20 इस्लामिक देशों में इसपर प्रतिबंध लगाया हुआ है तो भारत जैसा धर्मनिरपेक्ष देश क्यों नहीं कर सकता? मैं अनुरोध करता हूं कि इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। 1956 में पाकिस्तान ने भी इसपर प्रतिबंध लगा दिया था।’ ‘यह विधेयक किसी समुदाय, धर्म और आस्था के खिलाफ नहीं है। यह विधेयक महिलाओं के अधिकार और न्याय का है।’
इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा, ‘हम भी तीन तलाक विधेयक को ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग करते हैं। पूरे विपक्ष की एक राय है।’ वहीं कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि इस विधेयक पर आज ही चर्चा होनी चाहिए। अन्नाद्रमुक के अनवर रजा ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार ने पहले के विधेयक में बड़े संशोधन नहीं किए और संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ विधेयक लेकर आई है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह विधेयक सांप्रदायिक सद्भाव और संविधान के खिलाफ है।
ज्ञात हो कि सरकार ने तीन तलाक मामले में संशोधित विधेयक पेश किया है। इसमें पीड़िता, उससे खून का रिश्ता रखने वालों और विवाह से बने उसके रिश्तेदारों द्वारा ही पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करवा सकने का प्रावधान है। तीन तलाक गैर जमानती अपराध तो है, लेकिन मजिस्ट्रेट पीड़िता का पक्ष सुनकर सुलह करा सकेंगे, जमानत भी दे सकेंगे। पीड़ित महिला मुआवजे की हकदार होगी। पति को हो सकेगी तीन साल जेल की सजा।
वैसे तो तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित करने के लिए सरकार पहले भी एक विधायक लाई थी लेकिन यह राज्यसभा में सत्ता पक्ष के पास पर्याप्त संख्या बल के अभाव में अटक गया था। विपक्ष ने कुछ प्रावधानों को लेकर आपत्ति जताई थी। इसके पारित होने में देरी होते देख इस साल सितंबर में विपक्ष के कुछ प्रस्तावों को शामिल करते हुए अध्यादेश लागू किया गया। पुराना विधेयक अभी भी राज्यसभा में लंबित है। संशोधित विधेयक अध्यादेश और पुराने विधेयक की जगह ले लेगा।