नई दिल्ली! देश के 15 राज्यों और तीन केन्द्र शासित प्रदेशों में पिछले तीन वर्षों के दौरान निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के किसी भी बच्चे को अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार कानून के तहत प्रवेश नहीं मिला है. मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने आज राज्यसभा में पूरक प्रश्नों के जवाब में यह जानकारी दी.
उन्होंने बताया कि इस कानून की धारा 12(1) (ग) के तहत यह प्रावधान है कि सभी निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूल और विशेष श्रेणी के स्कूल कमजोर तथा वंचित वर्ग के बच्चों को पहली कक्षा में 25 प्रतिशत सीटों पर प्रवेश दिया जायेगा. उन्होंने कहा कि बार- बार के अनुरोध के बावजूद सभी राज्यों में इससे संबंधित प्रक्रिया पूरी नहीं की गयी है. फिर भी इस प्रावधान के तहत देश में निजी स्कूलों में पढने वाले आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों का आंकड़ा 2015-16 के 24 लाख की तुलना में वर्ष 2017-18 में बढकर 33 लाख तक पहुंच गया है.
सवाल के लिखित जवाब में उन्होंने जानकारी दी है कि 2015-16, 2016-17 और 2017-18 में 15 राज्यों आन्ध्र प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, गोवा, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, पंजाब, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा और तीन केन्द्र शासित प्रदेशों दादर एवं नागर हवेली, दमन और दीव तथा पुड्डूचेरि में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के एक भी बच्चे को निजी स्कूलों में प्रवेश नहीं दिया गया.
उन्होंने कहा कि 22 राज्यों ने इस अधिनियम के बारे में अधिसूचना जारी की है और बाकी राज्यों ने तो अधिसूचना भी जारी नहीं की है. ये राज्य निजी स्कूलों और उनमें पढने के लिए योग्य कमजाेर वर्ग के बच्चों की संख्या, उनके लिए जरूरी सीटों और उसके लिए दी जाने वाली सहायता राशि से संबंधित जानकारी भी नहीं दे रहे हैं.