डेस्क। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रान्ति का अपना अलग ही महत्व है। मकर संक्रांति का त्योहार सूर्य देव को समर्पित होता है। मकर सर्दियों के मौसम का अंत माना जाता है। इस दिन के बाद लंबे दिनों की शुरुआत हो जाती है। लोग सूर्य देव को खुश करने के लिए अर्घ्य देकर उनसे प्रार्थना करते हैं। मकर संक्रांति के दिन दान-पुण्य करने से उसका सौ गुना फल लौट कर आता है।
इतना ही नही बल्कि इस पर्व पर स्नान एवं दान का महत्व और भी अधिक माना जाता है। दरअसल शास्त्रों के अनुसार इस दिन दिया गया दान इस जन्म के साथ अगले जन्म में करोड़ो़ गुना होकर मिलता है। शास्त्रों एवं मान्यताओं के अनुसार मान्यता है कि यहां जितने भी दान किए जाते हैं वे अक्षय फल देने वाले होते हैं। महाभारत के अनुसार ‘यह देवताओं की संस्कार की हुई भूमि है। यहां दिया हुआ थोड़ा सा भी दान महान होता है।’
शास्त्रों के अनुसार संक्रांति का अर्थ है संक्रमण। इसलिए सूर्य के इस संक्रमण से बचने और मन की शुद्धि के लिए श्रद्धालु संगम तट पर तिल के तेल का दीपक जलाते हैं। मकर संक्रांति पर द्वादस माधव के तीर्थ प्रयाग में भगवान वेणी माधव को प्रमुख तीर्थ के रूप में माना जाता है। इसलिए वेणीमाधव भगवान को दीप दान विशेष रूप से करते हैं।
इसके साथ ही मकर संक्रांति पर हवन, अभिषेक, यज्ञ, नदियों में स्नान दान का बहुत महतव है। इस अवसर पर खिचड़ी, तिल, गुड़, चावल, नीबू, मूली, उड़द दाल और द्रव्य का दान करना चाहिए। इस दिन सूर्य को आराध्य मानकर पितरों को भी तिल, दान करना पुण्यकारी होता है।