मुंबई. सत्ता स्थापना को लेकर जब भारतीय जनता पार्टी द्वारा कवायद चल रही थी उस समय भाजपा नेता सुधीर मुनगंटीवार जो की पिछली सरकार में वित्त मंत्री रहे का बयान आया था ‘यदि भाजपा सरकार नहीं बनी तो प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग जाएगा ‘. उनके इस बयान को लेकर अच्छी खासी प्रतिक्रिया हुई थी लेकिन आज प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया है. तो क्या वाकई में मुनगंटीवार के बयान और राष्ट्रपति शासन के बीच कोई सम्बन्ध है ? क्या मुनगंटीवार यह इशारा देना चाह रहे थे की प्रदेश में उनके दल की सरकार नहीं बनी तो किसी और पार्टी की सरकार नहीं बनेगी? राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन यह कहते हुए लगाया कि प्रदेश में सत्ता स्थापित करने का कोई विकल्प नहीं है! राज्यपाल के इस निर्णय पर टीका टिप्पणियों का दौर शुरु हो चुका है जिसमें एक बात प्रमुखता से बोली जा रही है की सभी दलों को बराबर का समय क्यों नहीं दिया गया अपना दावा रखने का. दूसरी बात जो कही जा रही है वह है ‘बहुमत सिद्ध करने का स्थान राजभवन नहीं विधानसभा है और वंहा प्रयास किये बगैर यह कहना की कोई विकल्प नहीं है कंहा तक जायज है. इनके अलावा एक जो आशंका चर्चा का विषय बनी हुई है वह है क्या अब विधायकों की खरीद -फरोख्त का बाजार गरमाने वाला है ?
राष्ट्रपति शासन के बाद जिस तरह के बयान आ रहे हैं उससे यह बात स्पष्ट नजर आने लगी है. क्योंकि राष्ट्रपति शासन के बाद एक लम्बा समय सरकार बनाने के लिए मिल जाएगा. महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगने को लेकर एक बार फिर से ऐसे में राजनीतिक दलों को अपने विधायक होटल में या किसी दूसरे स्थान पर लम्बे समय तक रख पाना भी संभव नहीं हो सकेगा. हालांकि कांग्रेस -राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना की तरफ से इस बात के संकेत मिले हैं की वे आने वाले दो -तीन दिनों में ही चर्चाओं का दौर पूर्ण कर किसी ठोस निष्कर्ष पर पंहुच जायेंगें. राष्ट्रपति शासन के खिलाफ वैसे शिवसेना ने अदालत की शरण ली है. बताया जा रहा है की बुधवार सुबह पार्टी की तरफ से एक नयी याचिका और सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की जाएगी. लेकिन प्रदेश में खबरों का बाजार गर्म है की अब विधायकों की तोड़ -फोड़ का नया खेल बड़े पैमाने पर शुरु होगा.
प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की घोषणा के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता नारायण राणे देवेंद्र फडणवीस से मिलने गए. मुलाक़ात कर बाहर निकले तो मीडिया से बोले की उन्हें आदेश मिला है भारतीय जनता पार्टी की सरकार स्थापित कराने के लिए. उन्हें फडणवीस ने कहा है कि वे इस काम में लग जाएँ. राणे ने कहा की सत्ता स्थापित कराने के लिए जो जो काम करना होगा वो मैं करूंगा. कुछ देर बाद ही फडणवीस का बयान भी आया कि प्रदेश में भाजपा की स्थिर सरकार बनानी है ! बताया जाता है शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने विधायकों को दिलासा देते हुए कहा कि भाजपा वाले भी उनसे बातें कर रहे हैं और यदि वे हमारी शर्तें मान लेते हैं तो उनसे चर्चा आगे बढ़ायी जा सकती है. हालांकि यह बात कुछ चैनल्स और समाचार पत्रों में बतायी जा रही है कितनी सही है यह कहा नहीं जा सकता. वैसे उद्धव ठाकरे ने प्रेस कांफ्रेंस में इस बात का जिक्र किया कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस से चर्चाओं का दौर अब शुरू हो चुका है और शीघ्र ही स्थिर सरकार के लिए मार्ग खुलेगा. प्रदेश में सत्ता स्थापित करने के लिए शिवसेना का किस तरह से साथ दिया जाय इसको लेकर मंगलवार को भी दिन भर कांग्रेस के नेताओं और राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेताओं की बैठक हुई. बैठक के बाद दोनों दलों की तरफ से संयुक्त वक्तव्य भी आया जिसमें कहा गया की अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है और आगे की चर्चा कर यह बताया जाएगा.
दोनों पार्टियों की तरफ से जारी बयान को एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने पढ़ते हुए कहा, ‘यह फैसला लेने से पहले जरूरी है कि सभी बिंदुओं पर स्पष्टीकरण होना चाहिए. पहले कांग्रेस और एनसीपी कुछ बिंदुओं पर चर्चा करेंगे.
उसके बाद ही शिवसेना से बात की जाएगी. इसके बाद दोनों पार्टियां शिवसेना को समर्थन देने पर फैसला लेंगी.’ लेकिन जैसे ही राष्ट्रपति शासन लगा भारतीय जनता पार्टी की तरफ से सरकार स्थापित करने की गतिविधियों में तेजी आ जाना क्या इशारा करता है ? 48 घंटे पहले भाजपा ने राज्यपाल के सामने सरकार बनाने में असमर्थता जतायी थी और ऐसा क्या हो गया कि ‘राष्ट्रपति शासन लगते ही उसके पास बहुमत का आंकड़ा नजर आने लगा ! उसके नेता यह कहने लगे की कैसे भी हो सरकार भाजपा ही बनाएगी ! तो क्या अब प्रदेश में विधायकों की खरीद -फरोख्त का खेल शुरु होगा ? मणिपुर ,गोवा पैटर्न आयेगा या कर्नाटक की तरह ‘ऑपरेशन कमल ‘ खिलेगा या फिर कुछ नया प्रयोग होगा ? इस पर सभी की नजरें लगी हुई हैं. विधायकों की खरीद -फरोख्त के इस खेल की आशकाएं राष्ट्रपति शासन लागू होने से पहले भी लगायी जा रही थी और इन्हीं के चलते शिवसेना ने अपने विधायक और कुछ निर्दलीय विधायक मुंबई में एक होटल में रखे थे जबकि कांग्रेस ने जयपुर भेज रखे हैं. राष्ट्रपति शासन लगाने से पूर्व इस कार्य के लिए एक निर्धारित समय था लेकिन अब 6 महीने का लम्बा समय है. सबसे बड़ी बात यह है की जिस तरह से शिवसेना या एनसीपी को अतिरिक्त समय नहीं दिया गया और कांग्रेस को तो आमंत्रण ही नहीं दिया इससे विधायकों पर एक तरह का मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का कार्य भी शुरु हो गया है. यह दावे किये जाने लगे हैं की सरकार तो भाजपा की ही बनेगी ? इन दावों की वजह से विधायकों की खरीद -फरोख्त का अनुकूल माहौल तैयार किया जा रहा है यदि नहीं तो भाजपा के पास बहुमत का आंकड़ा कैसे जुटेगा ? भाजपा द्वारा सरकार बनाने का दावा छोड़ने के बाद उसके साथ जिन निर्दलीय और छोटी पार्टियों के विधायक होने की बात कही जाती थी आज उनमें से अधिकाँश शिवसेना और एनसीपी के साथ खड़े हैं.
शिवसेना पहले भाजपा को गठबंधन का फार्मूला लागू कर उसी के तहत सरकार बनाने की बात कहती थी , लेकिन अब उसने खुले रुप से घोषणा की है कि ‘कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस से सरकार बनाने की चर्चाएं जारी हैं और कुछ ही दिनों में प्रदेश को एक स्थिर सरकार दी जाएगी. सरकार स्थिर बने इसीलिए तमाम मुद्दों पर विचार किया जा रहा है. ऐसे में एक बड़ा सवाल तो है ही की भाजपा की सरकार कैसे बनेगी ? राष्ट्रपति शासन लग जाने के बाद एक बात तो स्पष्ट है की सरकार स्थापित करने के लिए मापदंड कठोर हो जाते हैं. किसी भी दल या गठबंधन को पूर्ण बहुमत के आंकड़े यानी महाराष्ट्र में सरकार स्थापित करने के लिए कम से कम 145 विधायकों के हस्ताक्षर वाला सहमति पत्र राज्यपाल के समक्ष पेश करना होगा. उसी के आधार पर राज्यपाल स्व विवेक का इस्तेमाल कर सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं. राष्ट्रपति शासन लग जाने के बाद यह कयास ख़त्म हो जाते हैं की विधानसभा में कोई दल मतदान के वक्त अनुपस्थित रहकर या बहिष्कार कर किसी की सत्ता स्थापित करा दे.
ऐसे में यह बात गौर करने की है कि देवेंद्र फडणवीस ने जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने विधायकों की खरीद -फरोख्त के आरोपों पर विपक्षी दलों को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी . उन्होंने कांग्रेस -राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना के नेताओं को विधायकों की खरीद फरोख्त के आरोपों के लिए माँगने को कहा था ! लेकिन देवेंद्र फडणवीस ने इस बात का जवाब नहीं दिया की वे सरकार कैसे बनायेंगें ? उनकी पार्टी के पास 105 विधायक हैं और प्रदेश में इस बार 12 ही निर्दलीय विधायक चुनाव जीते हैं. वे और उनकी पार्टी के नेता बड़े दम खम के साथ यह बात जोर जोर से बोल रहे हैं की बिना किसी दूसरी पार्टी के विधायक तोड़े वे सरकार बना लेंगें ! मगर यह संभव कैसे होगा ? कांग्रेस -राष्ट्रवादी और शिवसेना ये तीनों पार्टियां भाजपा के खिलाफ खड़ी हैं ,ऐसे में वह कौनसा फार्मूला है या जादू है जो सरकार बनाने में मदद करने वाला है. विगत 6 सालों में भारतीय जनता पार्टी द्वारा विभिन्न राज्यों में सरकारें स्थापित करने का जो फार्मूला है वह अक्सर मीडिया में सुर्खियां बना रहा है. कर्नाटक का नाटक उसका सबसे बड़ा जीता जागता उदाहरण है. ऑपरेशन कमल की चीरफाड़ जारी है. 100 करोड़ रुपये में विधायक खरीदने का आरोप 600 और 1000 करोड़ तक पंहुच गया है. गुजरात में सत्ता स्थापित हो जाने के बावजूद विधायकों को दल बदल कराने का खेल किसी से छुपा नहीं है. इस पीछे यही कारण हो सकता है की ,पार्टी को अपनी जीत का अंतर आज तक पच नहीं पा रहा है और विधायकों की संख्या 100 के पार ले जाने की अतृप्त इच्छा बार -बार कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने के लिए प्रेरित करती हो. लेकिन गुजरात की जनता ही अब आईना दिखाने लगी है ! कार्यवाहक मुख्यमंत्री फडणवीस भले ही विरोधी दलों को खरीद -फरोख्त या विधायकों की तोड़ फोड़ के आरोपों पर माफी माँगने की बात करें और अब राष्ट्रपति शासन लागू होते ही फिर से सरकार बनाने की बात कर रहे हैं लेकिन एक बात स्पष्ट है की बिना दूसरी पार्टी के विधायक साथ लिए या उससे गठबंधन किये यह गुत्थी कैसे सुलझेगी ? 24 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव आये और 9 नवम्बर को उसके कार्यकाल का अंतिम दिन था. इस पूरी अवधि में ना तो भाजपा ने सरकार बनाने के लिए राज्यपाल से कोई समय माँगा ना ही राजभवन की तरफ से ही सबसे बड़ा दल होने के नाते उन्हें निमत्रण भेजा गया. इस दौरान भाजपा के नेता राज्यपाल से मिलते रहे लेकिन मीडिया में आकर वे यही बताते रहे की राज्य में बेमौसम बारिश की वजह से जो हालात उत्पन्न हुए हैं उस पर चर्चा करने के लिए गए थे. मुख्यमंत्री ने भी इस मुद्दे पर अधिकारियों से बैठक की लेकिन नयी सरकार बनाने की पहल कंही से होती हुई नहीं दिखी. सरकार का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उन्हें 48 घंटे का समय दिया गया. लेकिन जब भाजपा के इंकार करने पर शिवसेना को सरकार बनाने के लिए आमंत्रण दिया गया तो ,निर्धारित विधायकों के समर्थन के लिए 24 घंटे का ही समय दिया गया और माँगने के बावजूद अतिरिक्त समय नहीं उपलब्ध कराया गया. महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की यह पहली घटना नहीं है.
राज्य में पहली बार 17 फरवरी 1980 को राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था. तब तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार के पास विधानसभा में पूर्ण बहुमत था, इसके बावजूद सदन भंग कर दिया गया था. इसके बाद 17 फरवरी से 8 जून 1980 तक यानी 112 दिन राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू रहा था. राज्य में दूसरी बार 28 सितंबर 2014 को राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था. तब राज्य में कांग्रेस के पृथ्वीराज चव्हाण मुख्यमंत्री थे . कांग्रेस ने सरकार में शामिल सहयोगी दल एनसीपी सहित अन्य सहयोगी दलों से किनारा कर लिया था. जिसके कारण विधानसभा को समय से पहले भंग करना पड़ा था. उस वक्त 28 सितंबर से 30 अक्टूबर 2014 तक यानी कुल 32 दिन तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था. यानी राज्य में तीनों बार लगे राष्ट्रपति शासन में पहली बार जहां स्वयं पवार शामिल रहे , वहीं दूसरी बार उनकी पार्टी और कांग्रेस के बीच पैदा हुए मतभेद के कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा . 12 नवंबर 2019 को लगे राष्ट्रपति शासन में भी पवार की भूमिका अहम है. अगर राष्ट्रपति शासन को लेकर राष्ट्रीय परिदृश्य देखें तो अलग-अलग राज्यों में अब तक 126 बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है, इसमें जम्मू -कश्मीर को शामिल नहीं किया गया है . सबसे ज्यादा मणिपुर में 10 बार, पंजाब में नौ बार, उत्तर प्रदेश में नौ बार, बिहार में आठ बार, कर्नाटक में 6 बार, पुदुचेरी में 6 बार, ओडिशा में 6 बार, केरल में चार बार राष्ट्रपति शासन लगा. इसके अलावा गुजरात में पांच बार, गोवा में पांच, मध्य प्रदेश में चार, राजस्थान में चार, तमिलनाडु में चार, नगालैंड में चार, अमस में चार, हरियाणा में तीन, झारखंड में तीन, त्रिपुरा में तीन, मिजोरम में तीन, आंध्रप्रदेश में तीन, महाराष्ट्र में तीन, अरुणाचल प्रदेश में दो बार, हिमाचल, मेघालय, सिक्कम, उत्तराखंड में दो बार और एक बार दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया.