नई दिल्ली. दिल्ली डिस्कॉम्स ने बिजली चोरी यानी एटीएंडसी लॉस में करीब 48 प्रतिशत की कमी की है. 19 वर्ष पहले दिल्ली में 55 प्रतिशत से भी अधिक एटीएंडसी लॉस था, जो अब घटकर करीब 7.5 प्रतिशत पर आ गया है. कई तो ऐसे इलाके थे, खासकर पूर्वी और मध्य दिल्ली, जहां 63 प्रतिशत बिजली की चोरी होती थी. पावर सेक्टर के अधिकारियों के मुताबिक, एटीएंडसी लॉस में भारी कमी लाकर दिल्ली देश के न्यूनतम एटीएंडसी लॉस वाले राज्यों में शामिल हो गई है.
पावर सेक्टर के अधिकारियों का कहना है कि एटीएंडसी लॉस में कमी करके तथा बिजली इंफ्रास्ट्र्क्चर में बड़े पैमाने पर निवेश करके, डिस्कॉम्स ने दिल्ली व यहां के उपभोक्ताओं के 1.2 लाख करोड़ रूपये बचाए हैं.
इन राज्यों की तुलना करें तो यहां है दिल्ली की पोजीशन
अगर दिल्ली के एटीएंडसी लॉस की तुलना देश के कुछ अन्य राज्यों से करें, तो केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के उदय वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में एटीएंडसी लॉस 67.7 प्रतिशत है, छत्तीसगढ़ में 40.45 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 26.31 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 24.89 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 20.76 प्रतिशत, राजस्थान में 20.47 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 19.39 प्रतिशत, पंजाब में 18.99 प्रतिशत, कर्नाटक में 13.8 प्रतिशत और तमिलनाडु में 12.46 प्रतिशत है. अगर दिल्ली में पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप की शुरूआत नहीं हुई होती, तो यहां भी अभी एटीएंडसी लॉस की यही स्थिति होती.
जाने क्या होता है एटीएंडसी
एटीएंडसी लॉस का मतलब मुख्यत: बिजली की चोरी है. प्रोफेशनल भाषा में इसे कुल तकनीकी व व्यायसायिक नुकसान कहते हैं.
कैसे बचाए 1.2 लाख करोड़
एटीएंडसी लॉस यानी बिजली चोरी में कमी और इंफ्रास्ट्र्क्चर में निवेश के जरिये ही दिल्ली डिस्काम्स ने 1.2 लाख करोड़ रूपये की बचत की है.
एटीएंडसी लॉस: दिल्ली डिस्कॉम्स ने एटीएंडसी लॉस में कमी लाकर दिल्लीवालों के 95,000 करोड़ रूपये बचाए. क्योंकि, एटीएंडसी लॉस में एक प्रतिशत की कमी का मतलब है बिजली उपभोक्ताओं के करोड़ों रूपये की बचत. वर्तमान में, एटीएंडसी लॉस में एक प्रतिशत की कमी का सीधा अर्थ है लगभग 250 करोड़ रूपये की बचत. पहले के वर्षों में यह रकम कम थी.
इंफ्रास्ट्र्क्चर में निवेश: दिल्ली डिस्कॉम्स ने बिजली वितरण के इंफ्रास्ट्र्क्चर में 19,000 करोड़ रूपये का निवेश किया है, ताकि राष्ट्रीय राजधानी में बिजली व्यवस्था को बेहतर बनाया जा सके. इस निवेश से, दिल्ली में बिजली की लगातार बढ़ रही मांग को पूरा करने में भी मदद मिली है. उल्लेखनीय है कि पिछले 19 वर्षों में दिल्ली में बिजली की मांग में 250 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो चुकी है. 2002 में यहां बिजली की पीक डिमांड 2879 मेगावॉट थी, जो 2019 में 7409 मेगावॉट पहुंच गई थी.
दिल्ली में 2014 से नहीं बढ़ी हैं बिजली की दरें
दिल्ली में बिजली की दरों में 2014 से कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. 2002 से लेकर अब तक दिल्ली डिस्कॉम्स की बिजली खरीद की कीमतों में 300 प्रतिशत से भी अधिक की बढ़ोतरी हो चुकी है, जबकि इसी अवधि में बिजली वितरण की दरों में सिर्फ 91 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.
दिल्ली में बिजली की दरें मुद्रास्फीति यानी इंफ्लेशन के हिसाब से भी नहीं बढ़ रही है. 2020 में देश में इंफ्लेशन की दर थी 6.2 प्रतिशत. 2019 में 4.76 प्रतिशत इंफ्लेशन था, 2018 में 3.43 प्रतिशत और 2017 में 3.6 प्रतिशत इंफ्लेशन रेट था. 2002 से अब तक, खाद्य पदार्थों में मुद्रास्फीति यानी फूड इंफ्लेशन की दर औसतन करीब 6.02 प्रतिशत रही है.