अयोध्या. रामजन्मभूमि में विराजमान रामलला की कलाई में 28 साल बाद फिर से ‘राखी’ सजेगी. यह राखी 84 कोसी परिक्रमा की परिधि में अयोध्या व अम्बेडकरनगर जनपद की सीमा के मध्य स्थित श्रृंगी ऋषि आश्रम से रामलला की बहन शांता की ओर से प्रतीकात्मक रीति से भेजी जाएगी. मालूम हो कि इस परम्परा का निर्वहन छह दिसम्बर 1992 के पहते तक होता रहा जब दशरथनंदन चारों कुमारों के लिए श्रृंगी आश्रम से राखियां आती थी. तत्पश्चात सात जनवरी 1993 से रामजन्मभूमि का अधिग्रहण हो गया जिसके कारण परम्परा विछिन्न हो गयी. इस परम्परा को पुन: स्थापित किया जाएगा.
इसकी पुष्टि रामलला के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येन्द्र दास ने करते हुए बताया कि चक्रवर्ती नरेश महाराज दशरथ की एक पुत्री भी थी. उन्होंने बताया कि महाराज दशरथ के अभिन्न मित्र व अंग देश के नरेश रोमपाद नि:संतान थे. उन्होंने महाराज दशरथ से बेटी को गोद लेने की इच्छा जताई. उनकी इच्छा पर महाराज दशरथ ने बेटी उन्हें सौंप दी. उसका नाम शांता था. बाद में अंग देश नरेश ने अपनी दत्तक पुत्री का विवाह ऋषि श्रृंग से किया जो कि विभांडक ऋषि के पुत्र थे. गोसाईगंज क्षेत्र में श्रृंगी ऋषि का आश्रम है. इसके कारण भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक पर्व रक्षाबंधन के अवसर पर यहां प्रतिवर्ष राखी आती थी और चारों भाईयों को बांधी जाती थी.
सावन शुक्ल पूर्णिमा के पर्व पर रक्षाबंधन का त्योहार प्रतिवर्ष मनाया जाता है. पूर्णिमा पर्व रविवार को मनाया जाएगा. यह पर्व श्रावणी के रुप में भी प्रसिद्ध है. सनातन परम्परा में श्रावणी को ब्राह्मणों का त्योहार माना गया है. इस मौके पर आचार्य रुप में ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमान की सुरक्षा के लिए रक्षासूत्र बांधने की भी परम्परा रही है जो आज भी प्रचलित है. इस दिवस को संस्कृत संरक्षण दिवस के रुप में भी मनाया जाता है. हनुमत संस्कृत महाविद्यालय के पूर्वाचार्य पं. हरफूल शास्त्री के अनुसार इस पर्व में भद्रा का निषेध किया जाता है. उन्होंने बताया कि पाताललोक की भद्रा रविवार को सायं 5.37 बजे से लगेगी और सोमवार को प्रात: 6.15 तक रहेगी. ऐसे में सायं से पूर्व रक्षाबंधन का मुहूर्त है.