कोलंबो. भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में खाने-पीने की चीजों की किल्लत हो गई है. लोग सुपरमार्केट के बाहर लंबी-लंबी कतारों में खड़े होते हैं, लेकिन अंदर सुपरमार्केट के शेल्व्स खाली हैं. दूध पाउडर, अनाज, चावल जैसे आयात होकर बिकने वाले सामान का स्टॉक खत्म हो रहा है. बीते हफ्ते श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे खाद्य आपूर्ति को लेकर आपातकाल की घोषणा कर दी थी. कई मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि आपातकाल और विदेशी मुद्रा संकट ने श्रीलंका को इस मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, 30 अगस्त को राष्ट्रपति ने जरूरी सामानों की आपूर्ति पर सख्त नियंत्रण लगाने की घोषणा की थी. इसके पीछे की मंशा व्यापारियों को खाने की चीजों की जमाखोरी को रोकना और महंगाई को कंट्रोल में रखना था. जमाखोरी की जांच के लिए सेना को भी तैनात कर दिया गया. दो हफ्ते बाद श्रीलंका की स्थिति और खराब हो गई है. स्थानीय मीडिया के मुताबिक, चावल, चीनी, दूध पाउडर, दालें और अनाज जैसे बुनियादी खाद्य आपूर्ति की अचानक से कमी हो गई है. सबसे ज्यादा असर सीनियर सिटीजन और परिवार हैं, जिनके यहां छोटे-छोटे बच्चे हैं. कई दुकानों पर शक्कर और दालों के दाम दोगुने और तिगुने तक वसूले जा रहे हैं.
खाने-पीने की चीजों की कमी के कई कारण हैं. कई चीजों के आयात पर रोक लगाना, जमाखोरी, कोविड के कारण टूरिज्म प्रभावित होना, विदेशी मुद्रा भंडार में भारी कमी और विदेशी कर्ज का भार जैसे कारण हैं. इस महीने से, श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के मॉनिटिरी बोर्ड ने 600 से अधिक उपभोक्ता वस्तुओं पर आयात प्रतिबंध लगा दिए. इनमें अनाज, स्टार्च, पनीर, मक्खन, चॉकलेट, मोबाइल फोन, पंखे, टीवी, सेब, संतरा, अंगूर, बीयर और वाइन शामिल हैं.
ये सभी उपाय देश के खर्च को कम करने के लिए किए गए थे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. वहीं, कोविड -19 संक्रमण की एक नई लहर के कारण उत्पादन में भी कमी आई. रॉयटर्स के मुताबिक, श्रीलंका को इस वक्त आलू-प्याज, मसालों से लेकर कुकिंग ऑयल तक आयात करने के लिए 100 मिलियन डॉलर की जरूरत है.
इस मुसीबत में आग में घी डालने का काम विदेशी मुद्रा भंडार ने किया है. वर्तमान में श्रीलंका का भंडार रेड जोन में है. देश की कमाई एक बड़ा हिस्सा कर्जों के भुगतान में जा रहा है. जुलाई के आखिर तक श्रीलंका का फॉरेन रिजर्व 2.8 बिलियन डॉलर था. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में ये भंडार 7.5 बिलियन डॉलर था. देश का कर्ज ब्याज के साथ 4 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है.
स्थानीय लोग बड़ी संख्या में किराने की दुकानों के बाहर अपने रोजमर्रा का सामान खरीदने इकट्ठा हो रहे हैं. लेकिन वह बेहद कम सामान भी खरीद पा रहे हैं, क्योंकि कीमतें भी तेजी से बढ़ रही हैं. कई इलाकों में शक्कर का दाम 120 से 190 और 230 रुपए किलो पहुंच गया है. श्रीलंका में आर्थिक मंदी चिंता का विषय है. क्योंकि यह दक्षिण एशिया की सबसे मजबूत इकोनॉमी मानी जाती थी. 2019 में वर्ल्ड बैंक ने श्रीलंका को दुनिया के उच्च मध्यम आय वाले देशों में की कैटेगरी में अपग्रेड भी किया था.