नई दिल्ली. टीवी न्यूज में बड़े से बड़े संवेदनशील मामलों पर बहस होती है. चैनल ठोस सबूत को दिखाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाता है. चैनलों की कोशिश होती है कि जल्द से जल्द सबूतों को दिखा दिया जाए लेकिन आपराधिक मामलों में सबूतों को टीवी डिबेट में पेश करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया और पुलिस को सख्त चेतावनी देते हुए कहा है कि यह कर्तव्यों का सरासर उल्लंघन है और ऐसे मामलों को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट में यह टिप्पणी कर्नाटक में 1999 में हुई एक डकैती के मामलों में आरोपियों पर सुनवाई के दौरान की है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए मीडिया और पुलिस को चेतावनी दी है और कहा है कि अपराध जैसे संवेदनशील मामले जो कोर्ट में है, उससे संबंधित सबूतों को टीवी डिबेट में पेश करना कर्तव्यों का सरासर उल्लंघन और आपराधिक न्याय में हस्तक्षेप माना जाएगा. एचटी की खबर के मुताबिक मंगलवार को एक मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया. दरअसल, 1999 में बेंगलुरु में डकैती के एक मामले में चार आरोपियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया. हालांकि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को मौत की सजा सुनाई थी जिसे हाई कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया था. इस मामले में पुलिस ने आरोपी के बयान को डीवीडी में रिकॉर्ड किया था लेकिन यह डीवीडी मीडिया के हाथ लग गई और निजी चैनल पर इसे दिखाया गया. सुप्रीम कोर्ट में यूयू ललित और पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने इसे गंभीरता से लिया और कहा कि डीवीडी मीडिया के हाथ में जाना और कुछ नहीं बल्कि कर्तव्यों की अवहेलना और न्याय प्रणाली में हस्तक्षेप है.
कोर्ट ने आरोपी को बरी किया
कोर्ट ने कहा इस तरह के किसी भी मामले में अगर वह कोर्ट में है और इससे संबंधित सबूतों को टीवी चैनल पर चलाया जाता है तो यह सीधे सीधे न्याय प्रणाली में हस्तक्षेप है. कोर्ट ने कहा कि कोर्ट में प्रस्तुत सबूतों को सार्वजनिक रूप से डिबेट करना सही नहीं है. ऐसे सबूत न्याय प्रणाली की संपत्ति हैं. इस पर किसी तरह की चर्चा बाहर नहीं होनी चाहिए. इस संबंध में सबूतों को लीक करना कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. दरअसल, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संदेहों का लाभ देते हुए चारों आरोपियों को बरी कर दिया और उन्हें जेल से आजाद करने का फरमान सुना दिया.