नई दिल्ली. केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसने राजद्रोह कानून के प्रावधानों की फिर से जांच करने और उन पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है. इसके साथ ही केन्द्र ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि जब तक सरकार इस मामले की जांच नहीं कर लेती, तब तक वह राजद्रोह का मामला नहीं उठाए.
उल्लेखनीय है कि एक दिन पहले ही सरकार ने देश के औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून का बचाव किया था और सुप्रीम कोर्ट से इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने के लिए कहा था. सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती दी गई है, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया था, लेकिन सोमवार को केन्द्र सरकार ने बिल्कुल यू-टर्न लेते हुए इसके प्रावधानों पर फिर से विचार करने की बात कही है.
स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज दबाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बना राजद्रोह कानून लंबे समय से न्यायिक समीक्षा के दायरे में है क्योंकि इस कानून का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है. निर्दलीय सांसद नवनीत राणा पर भी महाराष्ट्र पुलिस ने राजद्रोह कानून की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है और इसी वजह से उनकी गिरफ्तारी हुई. कानून के जानकारों के मुताबिक सार्वजनिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करने का संकल्प करने के कारण किसी सांसद और विधायक के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाना और जेल भेजना, इस कानून का सरासर दुरुपयोग है.
केन्द्र सरकार ने किया था सुनवाई का विरोध
राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार ने जवाब मांगा, तो केन्द्र सरकार ने हलफनामा दायर कर इस कानून की हिमायत की. केंद्र सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ से 1962 में आए केदार नाथ बनाम बिहार सरकार मामले में फैसला, मुद्दे के गहन विश्लेषण और परीक्षण के बाद दिया गया था. इसकी पुष्टि बाद के कई फैसलों में हुई. इसलिए चौतरफा असरदार इस अच्छे कानून पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है. केंद्र सरकार ने ये भी कहा है कि आईपीसी की इस धारा में जिन कानूनी प्रावधानों का वर्णन किया गया है, उनको चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज किया जाना चाहिए. ये सारी दलीलें सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की ओर से लिखित में दाखिल कर दी गई हैं.