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कई मुद्दों पर सहमत हुई सरकार, किसान आंदोलन वापस लेने को तैयार

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मुंबई। तमाम जद्दोजेहद और गंभीरता से जारी कवायद के बाद अंततः प्रदर्शनकारी किसान सरकार के लिखित आश्वासन के बाद अपना आन्दोलन वापस लेंगे। किसानों का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार हमारी मांगो को लेकर लिखित आश्वासन देगी तभी आन्दोलन वापस लिया जाएगा। वहीं बताया जा रहा है कि कुछ देर बाद सरकार की तरफ से मीडिया के जरिए इस बात की घोषणा करे जाने की उम्मीद है।

गौरतलब है कि सरकार और किसानो के बीच लगभग तीन घंटो तक मीटिंग चली। मीटिंग में किसानों ने महाराष्ट्र सरकार के सामने कर्ज माफी की शर्त रखी थी। महाराष्ट्र सरकार  ने 6 मंत्रियों की कमेटी का गठन किया। सरकार ने किसानो को कर्ज माफी को लेकर 6 महीने का समय मांगा है जिसे प्रदर्शनकारी किसानों ने मान लिया है।

ज्ञात हो कि महाराष्ट्र में अपनी कई मांगों को लेकर नाराज किसानों का मार्च लगातार जारी है। 7 मार्च को नासिक से शुरू हुआ ये आंदोलन रविवार को राज्य की राजधानी मुंबई पहुंच गया।  किसानों ने एलान किया था कि वो 12 मार्च को मुंबई में राज्य की विधानसभा का घेराव करेंगे और अपनी आवाज़ राजनेताओं के कानों तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे। बता दें कि महाराष्ट्र में ‘भारतीय किसान संघ’ ने इस मार्च का आयोजन किया है।

जानकारी के अनुसार इस आंदोलन में पूरे राज्य से करीब 30 हजार से ज्यादा किसान हिस्सा लिया। 167 किलोमीटर की पैदल यात्रा में सात दिनों तक चलने के कारण किसानों के पैर पत्थर जैसे हो गए हैं। सरकार से कर्ज माफी को लेकर उचित समर्थन मूल्य और जमीन के मालिकाना हक जैसी कई और मांगों को लेकर यह आंदोलन चला हैं।

वहीं  किसानों का कहना है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए और गरीब और मझौले किसानों का कर्ज़ माफ़ किया जाए। किसानों की मांग है कि उन्हें स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों के अनुसार सी2+50% यानी कॉस्ट ऑफ कल्टिवेशन (यानी खेती में होने वाले खर्चे) के साथ-साथ उसका पचास फीसदी और दाम समर्थन मूल्य के तौर पर मिलना चाहिए।

अगर जानकारों की मानें तो कर्ज़ माफ़ी के संबंध में जो आंकड़े दिए गए हैं को बढ़ा-चढ़ा कर बताए गए हैं। जिला स्तर पर बैंक खस्ताहाल हैं और इस कारण कर्ज़ माफ़ी का काम अधूरा रह गया है।’ कर्ज़ माफ़ी की प्रक्रिया इंटरनेट के ज़रिए हो रही है लेकिन डिजिटल साक्षरता किसानों को दी ही नहीं गई है, तो वो इसका लाभ कैसे ले पाएंगे? क्या उन्होंने इसके संबंध में आंकड़ों की पड़ताल की

इस मार्च में हज़ारों की संख्या में आदिवासी भी शामिल हुए। वास्तव में, मार्च में सबसे अधिक संख्या में आदिवासी ही शामिल हैं। कई आदिवासियों ने बताया, कई बार वन अधिकारी हमारे खेत खोद देते हैं। वो जब चाहें तब ऐसा कर सकते हैं। इसलिए अब हमें अपनी ज़मीन पर अपना हक चहिए। हमें हमेशा दूसरे की दया पर जीना पड़ता है। बताया जा रहा है कि मार्च के पहले दिन करीब 25 हज़ार किसानों ने इसमें हिस्सा लिया था। मुंबई पहुंचते-पहुंचते इनकी संख्या और बढ़ गई।

 

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