लखनऊ। बसपा सुप्रीमो मायावती ने आज कहा कि सरकारी प्रयास केवल दिखावटी, नुमाइशी एवं गुमराह करने वाला नहीं होना चाहिये बल्कि पूरी तैयारी एवं मज़बूती से मामले की प्रस्तुति करके एससी-एसटी कानून को दोबारा उसे उसके असली रूप में तत्काल बहाल कराना चाहिये। मायावती ने कहा कि अगर केन्द्र सरकार सम्बंधित मामले में समय पर उचित कार्रवाई करती तो आज ’’भारत बन्द’’ की नौबत ही नहीं आती और ना ही कुछ ग़ैर-आन्दोलनकारी असामाजिक तत्वों को सरकारी लापरवाही के कारण आगजनी व हिंसा आदि करने का मौका मिलता।
उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून, 1989 को निष्प्रभावी बनाने के खिलाफ देश भर में व्यापक आक्रोश है। मायावती ने मीडिया से बातचीत में कहा कि दलित और आदिवासी कर्मचारियों को मिलने वाले प्रमोशन में आरक्षण की सुविधा की तरह ही अब इस कानून को लगभग निष्क्रिय व निष्प्रभावी बना दिये जाने के खिलाफ देशभर में व्यापक आक्रोश है। ‘भारत बन्द’ जैसे आन्दोलनों की तीव्रता से मजबूर होकर ही केन्द्र सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में काफी विलम्ब से आज पुनर्विचार याचिका दाख़िल की गई।
साथ ही उन्होंने कहा कि बसपा ’’भारत बन्द’’ के दौरान हिंसक घटनाओं की तीव्र निन्दा करती है, लेकिन भाजपा सरकारों को इसकी आड़ में सरकारी जुल्म-ज्यादती करके लोगों को और भी ज्यादा भड़काने का प्रयास नहीं करना चाहिये। सरकार पूरी निष्पक्षता से काम करते हुये मृतकों व घायलों की उचित सहायता करे।
इसके अलावा कहा कि ‘वैसे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा की विभिन्न राज्यों की सरकार में दलितों, आदिवासियों व पिछड़ों की बहुत ही ज़्यादा उपेक्षा हो रही है तथा इन्हें इनके संवैधानिक व कानूनी अधिकारों से भी वंचित रखने का षडयंत्र लगातार किया जा रहा है…परन्तु एससी-एसटी कानून, 1989 को पूरी तरह से प्रभावाहीन व बेअसर बना देने की प्रधानमंत्री मोदी और महाराष्ट्र की भाजपा सरकार की साज़िशों ने इन वर्गों के लोगों को काफी ज्यादा उद्वेलित व आन्दोलित कर दिया है। इसी वजह से दलितों और आदिवासियों ने मिलकर आज ’भारत बन्द’’ का आयोजन किया, जिसे हर तरफ व्यापक समर्थन मिला है।
मायावती ने कहा कि वह संसद में नहीं हैं तो क्या हुआ, संसद के बाहर की हमारी राजनीति और जीवन संघर्ष मोदी सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर करती रहेगी। उन्होंने कहा कि वैसे भी इन वर्गों के उपेक्षित एवं शोषित लोग पहले से ही सरकारी शह एवं संरक्षण के कारण जातिवादी हिंसा व उत्पीड़न से काफी ज्यादा परेशान थे, परन्तु इस सम्बंध में अत्याचार निवारण कानून को एक प्रकार से कागज का टुकड़ा बना देने से इनके सब्र का पैमाना छलक गया है और वे लोग भी किसानों की तरह ही सड़कों पर उतर आने को मजबूर हुए हैं।