नई दिल्ली। एक तरफ 2019 के लोकसभा चुनाव बिलकुल सिर पर खड़े हैं! वहीं अधिकांश मामलों में लोग सरकार के फैसलों के खिलाफ अड़े हैं!! क्योंकि ये ही एक ऐसा वक्त होता है जब बड़ी से बड़ी सरकार को लगता है कि हम नही बल्कि लोग ही बड़े हैं!! जी चुनावी बयार में जहां कल ही अभी एक फैसले के खिलाफ लोगों ने बवाल खड़ा कर सरकार को सकते में ला दिया कि उसे आनन फानन में कोर्ट में पुनर्विचार की याचिका दाखिल करनी पड़ी। अभी कल ये बवाल शांत भी नही हो सका था कि इसी बीच सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा फेक न्यूज पर लगाम कसने को लेकर एक नया फरमान जारी कर दिया। जिससे सरकार के खिलाफ एक नये धड़े को जो कि समाज का चौथा स्तंभ माना जाता है को लामबंद होने का मौका मिल गया। लेकिन खैर मामले की गंभीरता और हालातों को देखते प्रधानमंत्री मोदी ने बेहद सराहनीय कदम उठाते हुए बिगड़ने से पहले मामला सम्हाल लिया। जिसके तहत फेक न्यूज पर लगाम लगाने को लेकर सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा लिए गए फैसले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ असहमति जताई है बल्कि इसे वापस लेने के लिए कहा है। इतना ही नही उन्होंने ये भी कहा कि इस मामले में केवल प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ही निर्णय लेगा।
गौरतलब है कि सोमवार को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने संशोधित दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा था कि अगर फर्जी खबर के प्रकाशन या प्रसारण की पुष्टि होती है, तो पहली बार ऐसा करते पाए जाने पर पत्रकार की मान्यता छह महीने के लिए निलंबित की जाएगी और दूसरी बार ऐसा करते पाए जाने पर उसकी मान्यता एक साल के लिए निलंबित की जाएगी।
वहीं तीसरी बार उल्लंघन करते पाए जाने पर पत्रकार की मान्यता स्थायी रूप से रद्द कर दी जाएगी। फर्जी खबर की जांच प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स असोसिएशन (एनबीए) द्वारा की जाएगी। प्रिंट मीडिया से संबंधित मामलों की जांच पीसीआई और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जांच एनबीए करेगी। मंत्रालय ने कहा था कि इन एजेंसियों को 15 दिन के अंदर खबर के फर्जी होने का निर्धारण करना होगा और पत्रकारों को इन दिशा-निर्देशों का पालन करना अनिवार्य होगा।
ज्ञात हो कि केंद्र सरकार के इस फैसले को लेकर विरोध शुरू हो गए हैं। जिसके तहत जहां एक तरफ पत्रकारों ने इसके विरोध में ट्वीट किए हैं वहीं कांग्रेस ने भी इसे हाथों-हाथ लिया । कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने ट्वीट कर लिखा है कि मैं फेक न्यूज पर अंकुश के लिए इस प्रयास की सराहना करता हूं लेकिन मेरे मन में कई सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने तीन अहम सवाल रखे थे कि 1. क्या गारंटी है कि इस नियम से किसी ईमानदार पत्रकार को प्रताड़ित नहीं किया जाएगा? 2. कौन तय करेगा कि न्यूज फेक है या नहीं? 3. इसकी क्या गारंटी है कि ऐसी गाइडलाइन से फेक न्यूज पर लगाम लगेगी?