नई दिल्ली। केंद्र सरकार की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम एससी/एसटी के खिलाफ नहीं हैं, बस इतना चाहते हैं कि किसी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। ज्ञात हो कि कोर्ट द्वारा पूर्व में दिये गये फैसले के बाद सोमवार को दलित समुदाय द्वारा भारत बंद के दौरान काफी हिंसा हुई। इस हिंसा में करीब नौ लोगों की मौत हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अत्याचार निवारण कानून से संबंधित आदेश को लेकर आज केंद्र सरकार की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान कहीं।
गौरतलब है कि सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से सरकार ने इस मामले में याचिका दायर करके शीर्ष अदालत से अपने गत 20 मार्च के आदेश पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है। जिसके तहत सरकार का मानना है कि एससी और एसटी के खिलाफ कथित अत्याचार के मामलों में स्वत: गिरफ्तारी और मुकद्दमे के पंजीकरण पर प्रतिबंध के शीर्ष अदालत के आदेश से 1989 का यह कानून ‘दंतविहीन’ हो जाएगा। साथ ही मंत्रालय की यह भी दलील है कि सर्वोच्च न्यायालय के हालिया आदेश से लोगों में संबंधित कानून का भय कम होगा और एससी/एसटी समुदाय के व्यक्तियों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में बढ़ौतरी होगी।
जबकि कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत दर्ज मामलों में उच्चाधिकारी की बगैर अनुमति के अधिकारियों की गिरफ्तारी नहीं होगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी से पहले आरोपों की प्रारंभिक जांच जरूरी है। न्यायमूर्ति गोयल और न्यायमूर्ति ललित की पीठ ने गिरफ्तारी से पहले मंजूर होने वाली जमानत में रुकावट को भी खत्म कर दिया है। शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद अब दुर्भावना के तहत दर्ज कराए गए मामलों में अग्रिम जमानत भी मंजूर हो सकेगी। न्यायालय ने माना कि एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग हो रहा है।
ज्ञात हो कि शीर्ष अदालत के इस फैसले पर सोमवार भारत बंद का आयोजन किया गया था, जिससे विभिन्न राज्यों में सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा। कई स्थानों पर आगजनी और हिंसक घटनाएं भी हुईं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत बंद के दौरान हिंसक घटनाओं में आठ लोगों के मारे जाने और कई लोगों के घायल होने की खबर है। मृतकों में मध्य प्रदेश के छह और उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान का एक-एक व्यक्ति शामिल है।