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सामाजिक विसंगति को बखूबी आइना दिखाया, दलित साधु को ‘महामंडलेश्वर’ बनाया

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नई दिल्ली। समाज में जारी जातिगत विसंगती के बीच हाल में एक ऐसी पहल हुई जो हालांकि सहल तो नही थी लेकिन इसके होने से समाज में फैले जातिगत कैंसर को फैलने से रोकने में अब काफी हद तक मदद मिल सकेगी। क्योंकि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा सोमवार को पहली बार एक दलित संत को धर्माचार्य की बड़ी उपाधि देने का ऐलान किया है। इसकी बात की पुष्टि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी ने कर दी है।

बता दें कि हिन्दू समाज में जाति के नाम पर भेदभाव की जो बाते सामने आती थी अब इससे साफ हो जाता है कि भेदभाव की बातें बीते दिनों की बात हो जाएगी। सनातन संस्कृति के इतिहास में किसी दलित को महामंडलेश्वर उपाधि देने का जूना अखाड़े का यह पहला फैसला है।

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी ने कहा कि सामाजिक समरसता की दिशा में बड़ा आध्यात्मिक कदम है। इसके बाद उन्होंने कहा कि प्रयाग में होने वाले कुंभ से पहले देश में सामाजिक गैर बराबरी और जातीय भेदभाव दूर करने में इस फैसले से मदद मिलेगी।

आपको बता दें कि कन्हैया कुमार कश्यप ने 2016 में उज्जैन स्थित सिंहस्थ कुंभ में पटियाला काली मंदिर में पहली बार जूना अखाड़े के महंत पंचानन गिरि महाराज से दीक्षा ली थी।

मिली जानकारी के मुताबिक उसी समय पंचानन गिरि महाराज ने उनका नामकरण कन्हैया प्रभुनंद गिरि के रूप में किया था। कन्हैया कुमार कश्यप आजमगढ़ के ग्राम बरौनी के दिवाकर पट्टी के निवासी हैं।

अखाड़ा परिषद के पदाधिकारियों और जूना अखाड़ा के संतों की मौजूदगी में कन्हैया कुमार कश्यप का विधि-विधान से मंत्रोच्चार किया गया। मंत्रोच्चार से पहले कन्हैया कुमार कश्यप का केश मुंडन किया गया और स्नान के बाद सन्यास वेश धारण कराया गया था।

इस प्रक्रिया के बाद दलित साधु का अभिषेक करके अखाड़ा के पंच परमेश्वर सहित कई महंतों ने सिंहासन पर बैठाया। साधु कन्हैया कुमार को धर्महित में कार्य करने का संकल्प दिलाया गया है।

 

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