डेस्क। पहले हम सब जैसे ज्यादातर या तो हिन्दुस्तान लीवर कुपनी का नाम सुनते थे या फिर हास्य अभिनेता जॉनी लीवर का नाम लेकिन हाल के कुछ सालों के दौरान हमें एक बीमारी का नाम बहुत ज्यादा सुनने में आता है और जब डाक्टर किसी को ऐसा बताता है तो वह मरीज एक पल को चकरा जाता है। इसलिए हमें यह जानना बहुत जरूरी है कि आखिर यह फैटी लीवर बीमारी क्या बला है।
वैसे तो आपने कई बार इलाज के दौरान आपने डॉक्टरों को कहते हुए सुना होगा कि फैटी लिवर की परेशानी है। दरअसल, लिवर यानी यकृत की कोशिकाओं में संग्रहित वसा का बढ़ जाना ही फैटी लिवर कहलाता है। ऐसा होने पर लिवर सही तरह से अपना काम यानी रक्त से विषाक्त पदार्थों को अगल नहीं कर पाता है। लिहाजा ऐसा होने पर व्यक्ति बीमार महसूस कर सकता है।
दरअसल यह दो तरह का हो सकता है। पहला नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर और दूसरा अल्कोहलिक फैटी लिवर। जो लोग शराब का सेवन नहीं करते हैं या कम मात्रा में करते हैं, उन्हें नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर की समस्या हो सकती है। दुनिया भर में यह स्थिति बहुत आम है, खासकर पश्चिमी देशों में। अमेरिका में इस बीमारी से करीब 8 से 10 लाख लोग प्रभावित हैं।
वहीं, अल्कोहलिक फैटी लिवर की बीमारी उन लोगों को हो सकती है, जो बहुत शराब पीते हैं। इस स्थिति के होने के बाद भी यदि व्यक्ति शराब का सेवन करता रहता है, तो यह अल्कोहल हेपेटाइटिस, लिवर फेल्योर, सिरोसिस और यहां तक कि लिवर कैंसर का कारण बन सकता है।
इस बीमारी का आमतौर पर कोई संकेत या लक्षण नहीं पता चलता है। फिर भी यदि पेट में ऊपर की ओर दाईं तरफ दर्द, थकान और लिवर बढ़ने की परेशानी हो, तो यह फैटी लिवर का लक्षण हो सकता है। नॉन अल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस और सिरोसिस होने के संभावित लक्षणों में हथेलियों का लाल होना, पेट में सूजन, त्वचा की सतह के नीचे बढ़ी हुए रक्त वाहिकाएं और त्वचा व आंखों का पीला होना (पीलिया बीमारी) आदि दिख सकता है।
वहीं जबकि इसके उपचार में आमतौर पर स्वस्थ आहार और व्यायाम के माध्यम से वजन घटाना चाहिए। वजन घटाने की सर्जरी उन लोगों के लिए एक विकल्प बन सकती है, जिन्हें बहुत अधिक वजन घटाने की जरूरत है। ऐसे लोगों को कम वसा वाले आहार लेने चाहिए। खाने में ज्यादातर ताजा फल, सब्जियां, जैतून का तेल का सेवन करना चाहिए। मीट खाने से बचना चाहिए।