नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को उसकी मुकदमा नीति में सुधार किये जाने पर जोर देते हुए कहा कि केंद्र बेकार मामलों पर अपील दायर करके जहां एक तरफ खुद पर वित्तीय बोझ बढ़ाती है, वहीं इससे कोर्ट की कार्रवाई पर भी असर पड़ता है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि आखिर सरकार सो-सो कर जागने की अपनी आदत से कब बाज आएगी। केंद्र बेकार मामलों पर अपील दायर करके जहां एक तरफ खुद पर वित्तीय बोझ बढ़ाती है, वहीं इससे कोर्ट की कार्रवाई पर भी असर पड़ता है। दरअसल कोर्ट ने कानून के एक ही तरह के मामलों से संबंधित एक जैसे सवालों को लेकर केंद्र से नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को अपनी मुकद्दमा नीति में सुधार की जरूरत है।
इतना ही नही कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार की इस गलत नीति के कारण उस पर जुर्माना भी लगाया जा चुका है लेकिन केंद्र ने इससे कोई सबक नहीं लिया। जस्टिस मदन बी.लोकुर और दीपक गुप्ता की एक बेंच ने एनडीए सरकार के सुधारवादी नारे का हवाला दिया है। बेंच ने कहा कि न्यायापालिका से सुधार करने के लिए कहा जा रहा है लेकिन वास्तव में सरकार अपनी जिम्मेदारी दूसरों पर थोपती है।’
बेंच ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि किसी दिन यूनियन ऑफ इंडिया को यथार्थवादी और सार्थक राष्ट्रीय मुकद्दमा नीति तैयार करने के संबंध में अक्ल आएगी। कोर्ट ने पिछले साल 8 दिसंबर को केंद्र सरकार द्वारा दायर की गईं कई अपीलों को खारिज कर दिया था। उसी मामले पर कानून के एक जैसे सवालों से जुड़ी कई सारी अपीलें दायर की थी जिसे 9 मार्च को कोर्ट ने खारिज कर दिया था और एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था।
लेकिन बावजूद इसके सरकार फिर भी नहीं सुधरी और एक बार फिर से कानूनी मामलों पर सरकार ने तीसरी बार अपील दायर कर दी जिस पर जस्टिस लोकुर और गुप्ता की बेंच सख्त हो गई और कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि केंद्र ने कोई सबक नहीं सीखा और अपना व कोर्ट का समय बर्बाद किया।