डेस्क्। कर्नाटक में कांग्रेस के लिए अब लिंगायत नाम का जिन्न उसकी मुश्किले बढ़ा रहा है क्योंकि चुनाव के दौरान अपने फायदे के लिए कांग्रेस द्वारा निकाला गया ये लिंगायत नाम का जिन्न किसी भी तरह से वापस बोतल में जाने को तैयार नही हो रहा है। जिसे देखते ऐसा जाहिर हो रहा है कि कर्नाटक में अभी सब कुछ सामान्य नही हो सका है। जानकारों की मानें तो यहां पर एक डॉयलाग बिलकुल फिट बैठता है कि पिक्चर अभी बाकी है दोस्तों।
हालांकि फिलहाल तो कांग्रेस और जेडीएस में दिख रही हैं यारियां लेकिन सरकार बनाने से लेकर चलाने तक में रहेंगी शायद दुश्वारियां ही दुश्वारियां। जिसके संकेत अभी से मिलने लगे हैं जैसा कि लिंगायत समुदाय के विधायकों और नेताओं ने अपने समुदाय का डिप्टी सीएम अथवा गृहमंत्री बनाये जाने की मांग रख दी है।
बेहद अहम और बाबिले गौर है कि कर्नाटक में अभी नई सरकार का शपथ ग्रहण नहीं हुआ है और अभी से कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ने लगी हैं। राज्य में लिंगायत का मुद्दा फिर गर्माया है। इस बार लिंगायत समुदाय ने ही मुख्यमंत्री बनने जा रहे एचडी कुमारस्वामी को खत लिखकर समुदाय के विधायक को गृहमंत्री बनाने की मांग की है।
जानकारी के अनुसार ऑल इंडिया वीराशैवा महासभा ने कुमारस्वामी को पत्र लिखकर मांग की है कि शमानुरु शिवशंकरप्पा जो कि वीरशैवा नेता हैं उन्हें गृहमंत्री बनाया जाए। उनके अलावा पांच अन्य नेताओं को भी मंत्रीमंडल में जगह दी जाए। इस पत्र में कहा गया है कि इन नेताओं को भाजपा की तरफ से पार्टी छोड़ने का ऑफर मिला था उसके बावजूद वो पार्टी के साथ बने रहे।
ज्ञात हो कि इस चुनाव में लिंगायत के 18 कांग्रेस विधायक जीतकर आए हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित कर एक बड़ी चाल चली थी। राजनीति विशेषज्ञ चुनावों से पहले कहते नजर आ रहे थे कि अब तक भाजपा के समर्थन कहे जाने वाले लिंगायतों का वोट यदि कांग्रेस की ओर शिफ्ट होता है तो वह दोबारा सत्ता में आ सकती है। लेकिन लिंगायतों के प्रभाव वाले क्षेत्र में भाजपा को बड़ी कामयाबी मिली। अब कांग्रेस को यह डर सता रहा है कि लिंगायत कार्ड कहीं उन पर ही उल्टा न पड़ जाए।
अगर सियासी जानकारों की मानें तो उनके अनुसार कर्नाटक में ऐसे ही भाजपा ने अपने कदम नहीं खींच लिये दरअसल क्योंकि एक तो मामला बेहद तूल पकड़ चुका था दूसरे उसे समय नही मिल सका जितना उसने सोचा था। वहीं उसको ये भी समझ में आ चूका था कि इनको सरकार बनाने दिया जाये। उसे यह लगा कि जैसा कि फिलहाल लिंगायत का मामला फंसा है वो आगे चलकर जहां इनकी सरकार की मुसीबत बनेगा बल्कि कहीे न कहीें भाजपा के लिए आगे की रणनीति में सहायक भी होगा। जिसकी बानगी अभी से नजर आने लगी है।