लखनऊ। हाल ही के उपचुनावों में जीत से उत्साहित और आगामी 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को अच्छी तरह से घेरने की कवायद में लगे सपा-बसपा गठबंधन ने एक बेहद ही अहम फैसला किया है जिसके तहत अब दोनों ही दल एक-दूसरे के बागियों को अपने यहां जगह नही देगें। ताकि आपस में किसी भी तरह का मतभेद पैदा न हो सके।
गौरतलब है कि फिलहाल जबकि दाेनाें दलाें में सीट बंटवारे काे लेकर अभी भी बातचीत चल रही है। एेसे में दाेनाें ने मिलकर एेसे नेताआें काे सबक सिखाने का प्लान बनाया है जाे फैसले के खिलाफ बगावती सुर अपनाने की साेच रहे हैं। फैसला इसलिए भी जरूरी है कि किसी बात को लेकर गठबंधन में मतभेद ना हो।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक हाल ही में मायावती और अखिलेश यादव ने निर्णय लिया है कि एक दूसरे की पार्टी के बागी नेताओं को शामिल नहीं करेंगे। चुनावी तैयारियों के साथ ही इस मुद्दे पर अनौपचारिक सहमति भी बन गई है। अब न तो बसपा, सपा के बागी नेताओं को अपनी पार्टी में शमिल करेगी और न ही सपा, बसपा के बागी नेताओं को। राजनीतिक जानकारों की मानें तो गठबंधन में यह विश्वास को कायम रखेगा। इससे दोनों ही पार्टियों को दूरगामी परिणाम भी मिलेेंगे।
इस बाबत सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी का कहना है कि दो महीनों के भीतर कोई भी सपा का नेता बसपा की पार्टी में शामिल नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि चुनाव को लेकर जबसे गठबंधन करके बीजेपी को चुनाव हराने का निर्णय लिया गया है किसी ने पार्टी नहीं बदली है। इसके पहले सपा के नेता अंतिम बार आगरा में शामिल हुए थे।
वहीं अगर सपा के तमाम अनुभवी नेताओं की मानें तो उनका कहना है कि अमूमन जो भी पार्टी छोड़ता है, उसके विरोध में ही बयानबाजी करने लगता है। ऐसे में उनको शामिल भी करना सही नहीं है, जो पार्टी छोड़ने के बाद सपा के विरोध में स्वर निकाले। सपा हमेशा से विश्वसनीय पार्टी रही है। सपा-बसपा विश्वास के साथ लोकसभा चुनाव में विजय पताका फहराएगी। सपा ऐसे नेताओं को शामिल नहीं करेगी जो बागी हैं, भले ही वह कितना भी मजबूत और वरिष्ठ क्यों न हो।