नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने आज मानवीय दृष्टिकोण से एक बेहद ही अहम बात कही कि दो पहिया और चार पहिया वाहनों की थर्ड पार्टी बीमा को अनिवार्य बनाया जाए, ताकि सड़क हादसों के पीड़ितों को मुआवजा मिल सके। साथ ही बीमा कंपनियों को इसे व्यवसायिक हित के बजाय मानवीय नजरिए से देखना चाहिए।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हर साल एक लाख लोगों की मौत हो रही है। शीर्ष न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के. एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली कमेटी ने यह सिफारिश की है कि दो पहिया या चार पहिया वाहनों की बिक्री के वक्त थर्ड पार्टी इंश्योंरेंस (बीमा) को एक साल की बजाय क्रमश: पांच साल और तीन साल के लिए अनिवार्य किया जाए।
इतना ही नही कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि देश की सड़कों पर चल रहे 18 करोड़ वाहनों में सिर्फ छह करोड़ के पास ही थर्ड पार्टी बीमा है। सड़क हादसों के पीड़ितों या मृतकों को मुआवजा नहीं मिल रहा है क्योंकि वाहनों को थर्ड पार्टी कवर नहीं है।
साथ ही न्यायालय ने कहा कि एक सितंबर से नए चारपहिया वाहनों का रजिस्ट्रेशन कराते समय तीन सालों के लिए थर्ड पार्टी बीमा अनिवार्य रूप से लेना होगा। थर्ड पार्टी बीमा को अनिवार्य बनाना होगा। पीठ ने कहा कि इस पर मानवीय नजरिए से देखा जाए, ना कि व्यवसायिक हितों के दृष्टिकोण से।
इसके अलावा पीठ ने कहा कि भारत के उन लोगों को देखिए जो सड़क दुर्घटनाओं में मर रहे हैं। लोगों को मुआवजा नहीं मिल पा रहा है क्योंकि बीमा कंपनियां काफी वक्त लगा रही हैं। आप इसे चार हफ्तों के अंदर करिए। आप आठ महीने नहीं ले सकते। शीर्ष न्यायालय ने इस मुद्दे पर एक सितंबर से पहले फैसला लेने को कहा।