नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ कुर्सी सम्हालते ही बेवजह के विवादों में उलझते ही जा रहे हैं। दरअसल पहले यूपी और बिहार के लोगों के विरोध में बयान देकर वो लोगों और तमाम सियासी दलों के निशाने पर आ गए थे। वहीं वंदे मातरम को लेकर दिये गए बयान पर जब बवाल बढ़ता नजर आया तो आखिरकार उन्होंने यू टर्न ले लिया है।
गौरतलब है कि काफी विरोध के बाद कमलनाथ सरकार ने यू टर्न लेते हुए आदेश वापस ले लिया है। सरकार का कहना है कि अब केवल सरकारी कर्मचारी नहीं बल्कि आम जनता भी वंदे मातरम गाएगी। इसके लिए पुलिस बैंड का मार्च निकाला जाएगा। जिसमें आगे बैंड, पीछे कर्मचारी और सबसे पीछे आम जन शामिल होंगे। यह कार्यक्रम महीने के पहले कार्यदिवस पर आयोजित किया जाएगा।
दरअसल नए साल पर वंदे मातरम को लेकर विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई थी जब कमलनाथ ने हर महीने की एक तारीख को मंत्रालय में गाए जाने वाले वंदे मातरम को बंद करने का फैसला लेकर सियायत गर्म कर दी थी। इस परंपरा के तहत मंत्रालय के सभी कर्मचारी महीने की पहली तारीख को परिसर में इकट्ठा होकर एकसाथ मिलकर राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ गाया करते थे। इससे पहले भी वंदे मातरम को लेकर सियासत होती रही है।
एक जनवरी मंगलवार को वंदे मातरम का गायन होना था। मगर इसकी सूचना न तो बैंड वालों को और न ही कर्मचारियों को दी गई। जबकि सामान्य प्रशासन एक हफ्ते पहले ही इसकी रूपरेखा तय करने के साथ गायन के लिए मुख्य अतिथि का भी निर्धारण करता था। कांग्रेस सरकार के इस कदम ने राज्य की सियासत में भूचाल लाने का काम किया। भाजपा ने कांग्रेस पर तुरंत हमला बोलते हुए पूछा कि क्या अब भारत माता की जय बोलने से भी रोका जाएगा।
ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश में साल 2005 में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने वंदे मातरम गाने की परंपरा शुरू की थी। सरकारी कर्मचारी महीने के पहले कार्यदिवस पर राष्ट्रीय गीत गाया करते थे। इस परंपरा को कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद खत्म करने का आदेश दिया था। जिसपर की भाजपा ने कड़ी आपत्ति जताई थी। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना था कि वह इस मुद्दे को लेकर आंदोलन करेंगे। अमित शाह ने भी राहुल गांधी से पूछा था कि क्या यह उनका आदेश है।