मेंटल असाइलम की कैद में चीखती एक आवाज…..गुस्से से भरी आंखें…..पागल ना होते हुए भी पागलों जैसी हरकतें….क्यों और कौन है उसकी इस हालत का जिम्मेदार…कुछ ऐसे ही सवालों से शुरु होती है कहानी. यूं तो इस तरह की कहानी आप किताबों में पढ़ चुके हैं. लेकिन डायरेक्टर चेराग रुपारेल के निर्देशन में इस साइको थ्रिलर स्टोरी को काफी मजबूती से पर्दे पर दिखाया गया है. प्यार, फरेब, कत्ल, बदला, गुस्सा और कुछ गहरे राज से भरी ये साली आशिकी की कहानी शुरुआत से लेकर आखिर तक एक-एक कर कुछ गहरे राज सामने लाती है.
ऐसी है कहानी
कहानी की शुरुआत दो स्टूडेंट्स साहिल मेहरा (वर्धन पुरी) और मिति देओरा (शिवालिका ओबेरॉय) से होती है. दोनों कॉलेज में एक दूसरे से पहली बार मिलते हैं. चार्मिंग और खूबसूरत मिति को देखकर साहिल अपना दिल दे बैठता है. मिति भी साहिल को चाहने लगती है लेकिन उसके प्यार करने की वजह साहिल का डिसेंट होना नहीं बल्कि पैसा होता है. मिति से दो बार धोखा मिलने के बाद साहिल एग्जाम के वक्त मिति को चीटिंग करते देख लेता है और अपने फ्रेंड वेणु (जेसी लीवर) को इशारे में बता देता है. वेणु टीचर को बताता है और टीचर मिति को प्रिंसिपल के पास ले जाती हैं. यहीं से शुरू होती है मिति के रिवेंज का खेल. चालाकी से खेलते हुए मिति-साहिल को पागल साबित करने में कामयाब हो जाती है और साहिल को शिमला मेंटल असाइलम भेज दिया जाता है.
मेंटल असाइलम में तीन साल तक रहने के बाद साहिल से जुड़ा एक सच सामने आता है. साहिल मेंटल असाइलम में रहकर मिति को कैसे सबक सिखाता है, और कामयाब हो पाता है या नहीं इसी की कहानी है ये फिल्म. बदला लेने में साहिल और मिति के लाइफ के कई राज सामने आते हैं. कई ट्विस्ट्स और टर्न्स से सजी फिल्म की कहानी अच्छी थ्रिलर स्टोरी बयां करती है.
वर्धन-शिवालिका की उम्दा एक्टिंग
चेराग रुपारेल ने अपनी इस साइको थ्रिलर कहानी के लिए दो नए चेहरों को लिया है. दोनों ही नए चेहरे हैं लेकिन उनकी एक्टिंग को देखकर कहीं भी इस बात को महसूस नहीं किया जा सकता. वर्धन पुरी ने साहिल के रोल में बखूबी एक ऐसे आदमी का चित्रण किया है जो मासूम भी है, गुस्सा भी उसके दिल में है, गर्लफ्रेंड से बेहद प्यार भी करता है और ईमानदार होने के बावजूद बड़े ही शातिर तरीके से अपना बदला भी लेता है. वहीं शिवालिका ओबेरॉय भी मिति के कैरेक्टर में बिल्कुल फिट बैठती हैं. उनकी एक्टिंग कहीं भी फ्रेशर का एहसास नहीं दिलाती है. सपोर्टिंग रोल में रुसलान मुमताज और जेसी लीवर ने भी अच्छा काम किया है.
आम कहानी की मजबूत लाॅन्चिंग
डायरेक्टर चेराग रुपारेल ने एक नाॅर्मल लड़के के साइको होने से लेकर उसके रिवेंज की कहानी को सलीके से पिरोया है. पहले ही सीन से फिल्म की कहानी हीरो के इर्द-गिर्द घूमती है. हर बार आपको लगता है कि क्या ये साइको ये? इसके साथ इतना बुरा क्यों हो रहा है? फिल्म की कहानी प्रेडिक्टेबल है लेकिन आपको जल्द से जल्द असल कसूरवार को सजा दिलाने की उत्सुकता होगी. ये साली आशिकी प्यार, धोखा और बदले की कहानी है लेकिन थोड़ी अलग.
स्टोरलाइन, बैकग्राउंड स्कोर और डायरेक्शन में अच्छा काम
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर, अच्छी स्टोरीलाइन और डायरेक्शन कहीं भी दर्शकों को बोर नहीं करती है. ओवरऑल दो नए चेहरों के साथ चेराग रुपारेल ने अच्छा काम किया है. प्रतीक शाह की सिनेमैटोग्राफी और अनीरबन दत्ता की एडिटिंग फिल्म के ट्विस्ट्स एंड टर्न्स को बेहतरीन एक्सपोजर देती है.
फिल्म के एक सीन में वर्धन अपने दादा अमरीश पुरी के दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के सीन को दोहराते नजर आए. कबूतरों को दाना खिलाते हुए वर्धन अपने दादा अमरीश पुरी के सीन की याद दिलाते हैं.
बढ़िया म्यूजिक
अब आते हैं गाने पर. फिल्म का गाना ‘हवा बनके’ एक खूबसूरत ट्रैक है लेकिन यहां वर्धन का एक्सप्रेशनलेस प्यार फीका पड़ता दिखाई देता है. रोमांटिक होने के मामले में वर्धन थोड़े कमजोर दिखाई दिए. इसके अलावा ‘सनकी’ गाना जो फिल्म के बैकग्राउंड में चलता रहता है बढ़िया है. साहिल के ग्रे शेड और सीन के मूड के मुताबिक इस गाने को सही जगह फिट किया गया है.