नई दिल्ली. कोरोना वायरस की वजह से देश में 40 दिन का लॉकडाउन लागू है. लॉकडाउन की अवधि 3 मई को खत्म हो रही है. इस माहौल में लगातार छंटनी या वेतन कटौती की खबरें आ रही हैं. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार कंपनियों से ऐसा नहीं करने की अपील कर रहे हैं, किंतु अब श्रम पर संसदीय समिति ने भी छंटनी या वेतन कटौती का समर्थन किया है. खबर के मुताबिक समिति ने सुझाव दिया है कि 300 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों को छंटनी या बंदी की आजादी होनी चाहिए. इसके लिए सरकार के दखल की जरूरत नहीं है. ट्रेड यूनियनों ने समिति के सुझाव का कड़ा विरोध किया है.
संसदीय समिति ने यह कहा
संसदीय समिति के अध्यक्ष और बीजू जनता दल सांसद भर्तुहरि महताब ने कहा है कि उद्योगों पर लॉकडाउन की अवधि का वेतन देने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता. समिति ने सिफारिश की है कि छंटनी या कंपनी बंद करने से जुड़े विशेष प्रावधन उन उद्योग प्रतिष्ठानों पर लागू होने चाहिए जिनमें काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 300 है. अगर सरकार संसद के समिति की सिफारिश मानती है तो 300 से कम कर्मचारियों वाली कंपनी की छंटनी करने की आजादी होगी. अभी ये प्रावधान 100 कर्मचारियों वाली कंपनियों पर लागू होते हैं. समिति ने राजस्थान का हवाला देते हुए तर्क किया है कि इससे रोजगार बढऩे के साथ छंटनियां कम हुई हैं.
आपदा की स्थिति में नियोक्ता की गलती नहीं
रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि भूकंप, बाढ़, चक्रवात आदि की स्थिति में कई बार प्रतिष्ठानों को लंबी अवधि के लिए बंद करना पड़ता है. इसमें नियोक्ता की कोई गलती नहीं होती. ऐसे में श्रमिकों को वेतन देने के लिए कहना अनुचित होगा. भर्तुहरि महताब ने कहा कि उद्योगों को मौजूदा बंदी कोविड-19 संकट की वजह से करनी पड़ी है. ऐसे में उन पर कर्मचारियों को बंद की अवधि का वेतन देने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता है. ये सही नहीं है.
छोटे उपक्रमों-एनबीएफसी को मदद
इस बीच, 15वें वित्त आयोग की आर्थिक सलाह समिति ने छोटे उपक्रमों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की मदद करने का सुझाव दिया है. समिति ने कहा है कि इससे दिवालिया होने से बचाया जा सकता है. समिति के सभी सदस्य इस बात पर एकमत थे कि मार्च 2020 से पहले किये गये वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर के अनुमानों पर नए सिरे से गौर करने और इसमें काफी कमी करने की जरूरत है.