नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी को राहत देते हुये उनके खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही पर लगायी रोक तीन सप्ताह के लिए बढ़ा तो दी, लेकिन उनके खिलाफ दर्ज मामलों की जांच का जिम्मा केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपने से इनकार कर दिया.
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 32 के तहत याचिका निरस्त नहीं की जा सकती. इसके साथ ही न्यायालय ने अनज़्ब के खिलाफ नागपुर में दर्ज प्राथमिकी को मुंबई स्थानांतरित किये जाने के अपने अंतरिम आदेश पर अंतिम मुहर लगा दी और कहा कि मुंबई पुलिस ही मामले की जांच करेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि अपने आदेश में यह स्पष्ट जरूर किया कि अर्नब के खिलाफ विभिन्न राज्यों में दर्ज प्राथमिकियां हर प्रकार से एक जैसी थीं. इसलिए नागपुर की प्राथमिकी को छोड़कर सभी प्राथमिकियां रद्द की जाती है. उन्होंने मुंबई पुलिस आयुक्त को अर्नब को सुरक्षा उपलब्ध कराने का आदेश भी दिया. खंडपीठ ने अर्नब की गिरफ्तारी पर रोक को लेकर 24 अप्रैल को जारी अंतरिम रोक एक बार फिर तीन सप्ताह के लिए बढ़ा दी और इस बीच स्थायी राहत के लिए संबंधित अदालत के समक्ष जाने की अनुमति प्रदान कर दी.
खंडपीठ की ओर से न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अर्नब के 21 अप्रैल के कार्यक्रम के आधार पर पुलिस अब देश के किसी भी हिस्से में प्राथमिकी दर्ज नहीं करेगी. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह ने गत 11 मई को सभी सम्बद्ध पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. न्यायालय ने प्रेस की आजादी को लेकर भी टिप्पणी की कि स्वतंत्र प्रेस के बिना नागरिकों की स्वतंत्रता कायम नहीं रह सकती, लेकिन प्रेस की आजादी भी तभी तक रहती है जब तक पत्रकार सच बोलता है.
सुप्रीम कोर्ट में अर्नब की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल पेश हुए थे. न्यायालय ने 24 अप्रैल को अर्नब को गिरफ्तारी से राहत प्रदान की थी और पिछली सुनवाई को यह राहत फैसला आने तक के लिए बढ़ा दी थी. अर्नब ने महाराष्ट्र के पालघर की मॉब लिंचिंग की घटना के बाद पुलिस की भूमिका और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की चुप्पी पर सवाल उठाये थे, जिसके बाद छह राज्यों में 16 से अधिक प्राथमिकियां दर्ज की गयी थी, उसके बाद वह शीर्ष अदालत पहुंचे थे. उन्हें उस मामले में गिरफ्तारी से अंतरिम राहत मिली थी. पिछले दिनों एक और प्राथमिकी दायर की गयी थी, जिसके खिलाफ एक बार फिर उन्होंने न्यायालय का रुख किया था और राहत की मांग की थी. दोनों ही मामले में न्यायालय ने याचिकाकर्ता को राहत दी थी.
सुनवाई के दौरान साल्वे ने कहा था कि याचिकाकर्ता के टीवी कार्यक्रम में सांप्रदायिक बात नहीं कही गई. उससे कोई दंगा नहीं हुआ. पालघर में महाराष्ट्र पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे. अब पुलिस ही अर्नब की जांच कर रही है, इसलिए जांच सीबीआई को सौंप दी जाये. महाराष्ट्र सरकार के वकील सिब्बल ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार जांच अपने हाथ में लेना चाहती है, हालांकि सॉलिसिटर जनरल ने सिब्बल की इस दलील का पुरजोर विरोध किया था.
साल्वे ने कहा था कि जांच का जिम्मा सीबीआई को दिए जाने की बात पर सिब्बल का एतराज दिखाता है कि समस्या राजनीतिक है. केंद्र और राज्य के झगड़े में एक पत्रकार को निशाना बनाया जा रहा है. अर्नब से पुलिस ने चैनल के मालिक, सर्वर, खबरों की चयन प्रक्रिया जैसी बातें पूछीं. अभिव्यक्ति की आजादी को ऐसे निशाना बनाने का दूरगामी असर होगा.