नई दिल्ली। एक कहावत है कि “देर आए पर दुरूस्त आए” की तर्ज पर अब सरकार तमाम बड़े घोटाले बाजों जैसे दूध से बखूबी जलने के बाद अब छाछ रूपी छोटे बकायेदारों को फूंक कर पीने अर्थात उन पर शिकंजा कसने चल दी है। जिसके तहत सरकार बैंकों का पैसा लेकर देश से बाहर भागने के मामलों की रोकथाम के लिए कर्ज के नियमों को सख्त कर रही है।
गौरतलब है कि वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 45 दिनों के भीतर ऐसे उन सभी कर्जदारों का पासपोर्ट का ब्योरा लेने को कहा है जिन्होंने 50 करोड़ रुपए से अधिक कर्ज ले रखा है। दरअसल इस पहल का मकसद नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे धोखाधड़ी करने वाले लोगों को देश छोड़कर भागने से रोकना है।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक वित्त मंत्रालय के परामर्श के तहत अब अगर कर्जदार के पास पासपोर्ट नहीं है, तब बैंक को घोषणापत्र के रूप में प्रमाणपत्र लेना होगा। इसमें यह जिक्र होगा संबंधित व्यक्ति के पास पासपोर्ट नहीं है। परामर्श में कहा गया है कि कर्ज आवेदन फार्म में उपयुक्त रूप से संशोधन किया जाना चाहिए ताकि इसमें ऋण लेने वालों के पासपोर्ट का ब्योरा शामिल किया जा सके। पासपोर्ट के ब्योरे से बैंकों को धोखाधड़ी करने वालों को देश छोड़कर भागने से रोकने के लिए समय पर कार्रवाई करने और संबंधित प्राधिकरणों को सूचित करने में मदद मिलेगी।
क्योंकि बैंक के पास पासपोर्ट का ब्योरा नहीं होने से डिफाल्टर खासकर जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वालों को देश छोड़कर जाने से रोकने के लिए समय पर कदम नहीं उठा पाते। नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या और जतिन मेहता जैसे कई बड़े डिफाल्टर देश छोड़कर फरार हो गए। इससे वसूली प्रणाली की उलझन बढ़ी है।
ज्ञात हो कि पिछले सप्ताह मंत्रिमंडल ने भगोड़ा आर्थिक अपराध विधेयक को मंजूरी दे दी। नीरव मोदी और उसके रिश्तेदार मेहुल चोकसी के पंजाब नेशनल बैंक के साथ 12,700 करोड़ रुपए की कथित धोखाधड़ी के बाद इसमें तेजी लाई गई। बैंकों को साफ-सुथरा बनाने के प्रयास के तहत वित्त मंत्रालय ने पिछले सप्ताह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को उन सभी फंसे कर्ज वाले खातों की जांच करने को कहा जिनमें बकाया 50 करोड़ रुपए से अधिक है। साथ ही मामले के अनुसार इसकी सूचना सीबीआई को देने को कहा। इसका मकसद धोखाधड़ी की आशंका का पता लगाना है।