लखनऊ। जिस एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम काेर्ट द्वारा किए गए बदलाव को लेकर इतना हो हल्ला मचा हुआ है उससे जुड़े फैक्ट और तमाम सियासी दलों खासकर इसके खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन को परोक्ष रूप से अपना समर्थन देने वाले प्रदेश के प्रमुख दल तथा उसकी मुखिया द्वारा ही पूर्व में जिस तरह से अपने मुख्यमंत्रित्व काल में जो संशोधन किये थे अगर उसे गौर फरमा लिया जाये। तो काफी हद तक न सिर्फ फैक्ट सामने आ जाऐगें बल्कि इस ममले को तूल देने वालों के टैक्ट भी सामने आ जायेगें।
उल्लेखनीय है कि एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम काेर्ट द्वारा किए गए बदलाव काे लेकर साेमवार काे दलित संगठनाें ने भारत बंद का आयाेजन किया। इस दाैरान देश के कई राज्याें में हिंसा की खबरें भी सामने आईं। इस आंदाेलन काे समर्थन देने को लेकर बेहद अहम बात ये है कि आज बसपा मुखिया मायावती सुप्रीम काेर्ट के फैसले का विराेध कर रही हैं जाे खुद ही अपने राज में ऐसे फैसले ले चुकी हैं।
गौरतलब है कि जब मायावती यूपी की सीएम थीं तब उनकी सरकार ने ऐसे ही दो आदेश जारी किए थे जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के दुरुपयोग को रोकने के लिए थे। तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा जारी ये आदेश इस बात पर केंद्रित थे कि ऐक्ट के तहत केवल शिकायत के आधार पर कार्रवाई न हो बल्कि प्राथमिक जांच में आरोपी के प्रथम दृष्ट्या दोषी पाए जाने पर ही गिरफ्तारी हो। वहीं यह भी ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी ऐक्ट से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए इसमें तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। इसके अलावा ऐक्ट के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछेक और व्यवस्था की गई है।
जबकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को भारत बंद का आयोजन किया था। मायावती ने भी दलित संगठनों की मांग को अपना समर्थन दिया। बंद के दौरान व्यापक हिंसा हुई और 12 लोगों की मौत हो गई।
विपक्ष और दलित संगठन इस ऐक्ट को कमजोर करने का आरोप लगा मोदी सरकार को घेर रहे हैं। बैकफुट पर नजर आ रही मोदी सरकार ने इसे लेकर रिव्यू पिटिशन दाखिल किया है, लेकिन सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया है।