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प्रदेश में “बेटी बचाओ” नारे की उड़ती धज्जियां, खौफ के साये में जीने को मजबूर हमारी बच्चियां

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डेस्क। उत्तर प्रदेश में केन्द्र की मोदी सरकार का “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का नारा बन कर रह गया है महज बेचारा क्यों कि अब बेहद खौफ और लाचारी में जी रहे हैं बेटी वाले परिवार लेकिन अफसोस कि उनको बचाने में कुछ भी नही कर पा रही है सरकार। बेहद ही गंभीर बात है कि जिस कानून-व्यवस्था के मुददे पर प्रदेश की जनता ने सूबे की कमान बड़ी उम्मीदों के साथ भाजपा के हाथों में प्रचण्ड बहुमत के साथ सौंपी थी। आज वो ही जनता बाकी बातें तो छोड़िये बल्कि कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर ही खुद को ठगा महसूस कर रही है।

गौरतलब है कि वैसे तो प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बनी इस सरकार को तकरीबन 16 माह हो चुके हैं। जिस तरह से सत्ता सम्हालते ही मुख्यमंत्री योगी ने अपने सख्त तेवर दिखाये थे और खासकर प्रदेश की बेटियों की सुरक्षा के लिए तमाम कवायदें खासकर एन्टी रोमियो स्क्वॉयड बनाया था। महज कुछ वक्त में ही वो सारी कवायदें प्रशासनिक अफसरों खासकर पुलिस विभाग की टाल-मटोल नीति और लचर रवैये की भेंट चढ़ गयीं। जिसकी परिणति है कि आज प्रदेश में बेटियों के साथ होने वाले अपराधो का ग्राफ इस कदर बढ़ गया है कि जनता और विपक्ष दोनों ही के निशाने पर योगी सरकार आने लगी है।

प्रदेश की योगी सरकार में सबसे पहले उन्नाव का बहुचर्चित रेप कांड सामने आया इसी बीच इसी जनपद में सरेशाम एक बेटी को दरिंदों द्वारा जिन्दा जला दिया गया। जिसका न तो आज तक खुलासा हुआ और न ही कोई गिरफ्तारी हो सकी। सरकार बनने के शुरूआती दौर में ही प्रदेश भर में शोहदों और तमाम विक्षिप्त किस्म के लोगों द्वारा कई जनपदों में बेटियों का जीना मुहाल किये जाने के मामले जब-तब सामने आये। लेकिन क्योंकि इन मामलों में कोई कड़ी और ठोस कारवाई न होने से ऐसे अराजक तत्वों के हौसले बुलंद हो गए। नौबत इस हद तक पहुंची कि बेटियों ने कई मामलों में तो स्कूल तक जाना छोड़ दिया।

हालांकि सरकार इस पर बराबर सख्ती किये जाने के निर्देश तो देती रही लेकिन लम्बे समय से एक ही जगह पर तैनात तमाम जिम्मेदार पुलिस अफसरान और पुलिसकर्मी अपने पुराने ढर्रे पर काम करते रहे और ऐसे गंभीर मामलों में अनदेखी करते रहे। वहीं कई जगहों पर खुद ही सत्तारूढ़ पार्टी के नेता ही ऐसे पुलिसकर्मी और अफसरों को संरक्षण देते रहे। जिसका नतीजा प्रदेश भर में तमाम उन बेटियों और उनके परिवारों को भुगतना पढ़ा और आज भी भुगतना पढ़ रहा है।

प्रदेश में हालात कुछ यूं हैं कि जनपद सिद्धार्थनगर में छेड़खानी और अपने परिवार के साथ की गई पिटाई की शिकार एक बीएससी की छात्रा तकरीबन दो माह से पुलिस द्वारा टरकाये जाने पर संतरी से लेकर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री के यहां तक गुहार लगाने पर भी कोई सुनवाई न होने पर आहत होकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र लिख सपरिवार इच्छा मृत्यु की गुहार तक कर डाली। इस पूरे मामले में खाकी और खादी का गठजोड़ सामने आया था जिसके चलते जहां आरोपियों को बचाया जा रहा था वहीं उक्त पीड़िता और उसके परिवार को फर्जी केस में फंसाने के लिए धमकाया भी गया।

ज्ञात हो कि अभी हाल ही में मेरठ में एक बेटी को छेड़छाड़ का विरोध करने पर जलाये जाने की घटना की आंच कम नही हो सकी थी। कि अब जनपद बांदा में गैंगरेप जैसी गंभीर घटना पर पुलिस द्वारा सुनवाई न होने के चलते तंग आकर एक और बेटी ने खुदकुशी कर ली। दोनों ही घटनाओं में पुलिस का बेहद ही घिनौना और अपने फर्ज के प्रति बौना रवैया सामने आया है। प्रदेश भर में अगर अब तक के हुए बेटियों के साथ हुए ऐसे सभी मामलों की अगर तह में जाया जाये तो सच मानिए कि अधिकांश में किसी न किसी रूप में पुलिस का लचर रवैया और लापरवाही ही हालात को इस नौबत तक लाने की वजह बनी होगी।

इतना ही नही उन्नाव का बहुचर्चित गैंगरेप कांड से लेकर देवरिया बहुचर्चित कांड तक देखा जाये तो ऐसे बड़े और गंभीर मामलों में जब पुलिस का रवैया कैसा और क्या रहा वो तो सबके सामने है ही। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब ऐसे बड़े और गंभीर मामलों में पुलिस का रवैया कितना लचर और शर्मनाक रहा तो फिर आम परिवार की बेटियों के मामले में वो कैसा रवैया अपनाती होगी कुछ कहने की जरूरत नही है। क्योंकि हाल ही के मेरठ मामले में और बांदा मामले में उसकी स्वतः पुष्टि हो ही रही है। बाकी पिछले किस्से तो बानगी हैं ही। आज हालात ये हैं कि बेटियों को अभिभावक स्कूल भेजने से डरने लगे हैं। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब प्रदेश के किसी कोने से किसी बेटी के साथ कोई घटना न घटती हो।

अगर जानकारों की मानें तो सच मानिये कि सरकार कोई भी हो और किसी की भी हो गर उसमें अफसरशाही और नौकरशाही पर लगाम कसने की नही होती है ताकत तो फिर आ ही जाती है ऐसी नौबत। क्योंकि दूसरे दलों और पिछली सरकार के ऐहसान तले दबे तमाम अफसर कुछ इस तरह से अपना फर्ज निभाते है जिससे बखूबी मौजूदा सरकार की तो किरकिरी कराते हैं वहीं सत्ता से बाहर बैठे अपने आकाओं के वापस लौटने का प्लेटफार्म भी बनाते हैं। इस सरकार में ऐसा ही कुछ हो रहा है।

इसके साथ ही जानकारों का मानना है कि जो वाकई में कर्मठ और जिम्मेदार अफसर हैं उनमें अधिकांश अलग-थलग पड़े हैं। समय रहते सरकार ऐसे अहम मामले में गर कोई सख्त कदम नही उठाएगी तो सच मानिए 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली का ताज-ओ-तख्त भी गंवाऐगी।

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