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अखिलेश के लिए एक नई मुसीबत सामने आई, आहत शिवपाल ने अब अपनी अलग पार्टी बनाई

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लखनऊ। प्रदेश के 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी में परिवारिक कलह के चलते हुई दुर्दशा से सबक न लेना पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को अब बहुत ही भारी पड़ने वाला है। क्योंकि हाल फिलहाल मिशन 2019 की तैयारियों में जुटे अखिलेश एक तरह से हर तरफ से घिरते जा रहे हैं।

गौरतलब् है कि जहां एक तरफ अमर सिंह द्वारा दी गई चुनौती से वह उबर भी नही पाऐ थे कि अब उनकी लगातार उपेक्षाओं से आहत उनके चाचा और समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता रहे शिवपाल का अपनी पार्टी बनाया जाना अखिलेश के लिए पनौती का काम करेगी।

समाजवादी पार्टी में काफी लम्बे वक्त से लगातार जारी अपनी उपेक्षा से आहत होकर लगातार उपेक्षा के बाद पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने आज अपनी अलग पार्टी समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का गठन कर दिया है। उन्होंने कहा है कि समाजवादी सेक्युलर मोर्चा यूपी में नया सियासी विकल्प होगा। इसके जरिए मैं छोटे दलों को जोड़ूंगा।

शिवपाल सिंह ने कहा कि सपा में अपनी इज्जत न होने से मैं आहत हूं। मुझे किसी भी मीटिंग में नहीं बुलाया जाता था। उन्होंने ये भी कहा कि उस पार्टी में अब नेताजी का भी सम्मान नहीं किया जाता है। उनकी उपेक्षा से मैं बहुत दुखी हूं।

खुले तौर पर आमंत्रण देते हुए उन्होंने कहा कि जो भी पार्टी द्वारा उपेक्षित है या फिर जिनका भी भी सम्मान सपा में नहीं हो रहा है, वे हमारी पार्टी में आ जाएं। शिवपाल सिंह ने भाजपा में जाने की बात को अफवाह बताया।

ज्ञात हो कि लोहिया ट्रस्ट की बैठक में सोमवार को ही मुलायम-शिवपाल ने ट्रस्ट के कार्यों की गहन समीक्षा के तहत साथ बैठे थे। वहीं मंगलवार को सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव के बीच काफी देर गुफ्तगू हुई थी।

सूत्रों के मुताबिक क्योंकि हाल ही में मुलायम भी अपनी व्यथा कथा भगवती सिंह के जन्मदिन के मौके पर व्यक्त कर ही चुके हैं। संभवतः इसी दौरान दोनों के बीच सेक्युलर मोर्चे को लेकर अहम बातचीत हुई थी। इस दौरान एक शिवपाल समर्थक नेता की ओर से गठित सेक्युलर मोर्चे को लेकर रणनीति बनाई गई।

राजनीति में अपनी महारत रखने वाले मुलायम से काफी कुछ राजनीति का ककहरा सीखे और पार्टी के लिए कई मौकों पर संकटमोचक रहे शिवपाल इतने लंबे वक्त तक खामोश रहकर सही वक्त का इंतजार कर रहे थे क्योंकि ऐसे नाजुक मौके पर अपना दांव चल कर उन्होंने काफी हद तक साबित कर दिया कि सौ सुनार की एक लुहार की।

वहीं सपा में आज भी भारी संख्या में मौजूद तमाम उनके समर्थकों का मानना है कि राजनीतिक क्षेत्र में दखल बरकरार रखने के लिए इस मोर्चे का बनना जरूरी था। शिवपाल समर्थकों का मानना है कि उन्हें चुनाव की रणनीति बनाने में महारत हासिल है। 2012 के चुनाव में सपा की जीत में उनकी भूमिका अहम थी।

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