नई दिल्ली। बरसों से तमाम कवायदों और हाल में मौजूदा सरकार द्वारा चलाई जा रही परियोजना के बावजूद हमारी मैया स्वरूप गंगा नदी को लेकर एक अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ की रिपोर्ट से एक बार फिर गंगा मैया के संवरने और हालात सुधरने की उम्मीद कम ही नजर आती है।
गौरतलब है कि गंगा की बेहतरी के लिए भले ही केंद्र सरकार नमामि गंगा जैसी परियोजना के जरिए भारी-भरकम धनराशि खर्च कर रही है, बावजूद इसके देश की इस पवित्र नदी की सेहत नहीं सुधर रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के एनजीओ वर्ल्ड वाइड फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) ने इसे दुनिया की सबसे संकटग्रस्त नदी करार दिया है।
इतना ही नही बल्कि इसके पीछे तर्क देते हुए संस्था ने कहा है कि गंगा विश्व की सबसे अधिक संकटग्रस्त नदी इसलिए है, क्योंकि लगभग सभी दूसरी भारतीय नदियों की तरह गंगा में भी लगातार पहले बाढ़ और फिर सूखे की स्थिति पैदा हो रही है। इस अंतरराष्ट्रीय संस्था का गंगा को लेकर जारी यह बयान सरकार के लिए झटका माना जा रहा।
उसके अनुसार गंगा ऋषिकेश से ही प्रदूषित हो रही है। आगे के इलाकों में बढ़ने के बाद उसमें मिलने वाले प्रदूषण का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। गंगा किनारे लगातार बसाई जा रही बस्तियों चन्द्रभागा, मायाकुंड, शीशम झाड़ी में शौचालय तक नहीं हैं।
उनका मानना है कि संभवतः इसलिए यह गंदगी भी गंगा में मिल रही है। ऋषिकेश से लेकर कोलकाता तक गंगा के किनारे परमाणु बिजलीघर से लेकर रासायनिक खाद तक के कारखाने लगे हैं। जिसके कारण गंगा लगातार प्रदूषित हो रही है।
ज्ञात हो कि देश की सबसे प्राचीन और लंबी नदी गंगा उत्तराखंड के कुमायूं में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है। गंगा के इस उद्गम स्थल की ऊंचाई समुद्र तल से 3140 मीटर है। उत्तराखंड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक गंगा विशाल भू-भाग को सींचती है।
गंगा उत्तराखंड में 110 किमी , उत्तर प्रदेश में 1,450 किलोमीटर , बिहार में 445 किमी और पश्चिम बंगाल में 520 किमी का सफर तय करते हुए बंगाल की खाड़ी में मिलती है। यह नदी 40 से 50 करोड़ से अधिक लोगों का भरण-पोषण करती है। भारत में गंगा क्षेत्र में 565,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर खेती की जाती है, जोकि भारत के कुल कृषि क्षेत्र का लगभग एक तिहाई है।