नई दिल्ली। संपत्ति के बंटवारे में असंतुलन दुनिया भर में इस कदर बढ़ रहा है कि पिछले साल बढ़ी 762 अरब डॉलर की संपत्ति का 82 फीसदी हिस्सा चंद धनकुबेरों के कब्जे में चला गया वहीं जबकि अधिकांश आबादी की स्थिति में कोई भी परिवर्तन नहीं आ पाया। इसी प्रकार अपने देश में भी 2017 में कुल संपत्ति के सृजन का 73 प्रतिशत हिस्सा केवल एक प्रतिशत अमीर लोगों के हाथों में है। एक नए सर्वेक्षण से आज इस तथ्य का खुलासा किया गया। साथ की सर्वेक्षण ने देश की आय में असामनता की चिंताजनक तस्वीर पेश की।
अंतरराष्ट्रीय राइट्स समूह ऑक्सफेम की ओर से यह सर्वेक्षण दावोस में आयोजित विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की शिखर बैठक शुरू होने से कुछ घंटे पहले जारी किया गया। इसमें कहा गया है कि 67 करोड़ भारतीयों की संपत्ति में सिर्फ एक प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जिसके तहत 2017 के दौरान देश के एक प्रतिशत अमीरों की संपत्ति बढ़कर 20.9 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई है।
ऑक्सफेम के वार्षिक सर्वेक्षण को महत्वपूर्ण माना जाता है और विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक में इस पर विस्तार से चर्चा होती है, जहां बढ़ती आय और लिंग के आधार पर असमानता दुनिया भर के शीर्ष नेताओं के बीच प्रमुख बिंदु है। सर्वेक्षण में बताया गया है कि देश की कुल संपत्ति का 58 प्रतिशत हिस्सा देश के एक प्रतिशत अमीर लोगों के पास है। जो कि वैश्विक आंकड़े से भी अधिक है। वैश्विक स्तर पर एक प्रतिशत अमीरों के पास कुल संपत्ति का 50 प्रतिशत हिस्सा है।
ऑक्सफैम की आज जारी वार्षिक रिपोर्ट ‘रिवार्ड वर्क, नॉट वेल्थ’ के मुताबिक गत साल दुनिया भर के अरबपतियों की संपत्ति में 762 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है, जो वैश्विक गरीबी को कम से कम सात बार खत्म करने की क्षमता रखती है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि तेजी से बढ़ती वैश्विक अर्थव्यवस्था ने संपत्ति के बंटवारे में असमानता को चरम पर ला दिया है। मौजूदा अर्थव्यवस्था ने मात्र एक प्रतिशत धनकुबेरों को गत साल बढ़ी संपत्ति में 82 प्रतिशत हिस्सा दिया है जबकि अत्यंत गरीब 50 प्रतिशत आबादी को इसमें कोई हिस्सा नहीं मिल पाया है। गत साल अरबपतियों की संख्या बढक़र 2,043 हो गई जिनमें से 90 फीसदी पुरुष हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, अरबपतियों की संख्या से पता चलता है कि संपत्ति कठिन श्रम और नवाचार से अधिक नहीं बढ़ी बल्कि इसमें एकाधिकार, विरासत और सरकार के साथ साठगांठ का अधिक योगदान है। इसके अलावा कर चोरी, श्रमिकों के अधिकारों का हनन और ऑटोमेशन ने भी इस असमानता को बढ़ावा दिया है।