डेस्क। आगामी लोकसभा चुनावों का नजदीक आते जाना और बसपा सुप्रीमो मायावती का सधे अंदाज में अपना दांव चलते जाना काफी हद तक ऐसा जताता है कि वो मौके की नजाकत को देखते हुए कोई भी ऐसा कदम नही उठाना चाहती हैं जिससे उनको पछताना पड़े या फिर भारी कीमत चुकानी पड़े। एक कहावत है कि दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीता है और जाहिर सी बात है कि बसपा सुप्रीमों पिछले दो चुनावों 2014 के लोकसभा तथा 2017 के विधानसभा चुनावों में बखूबी तर्जुबा ले चुकी हैं।
गौरतलब है कि जिस तरह से बसपा सुप्रीमों मायावती बार-बार सम्मानजनक सीटों के तहत ही गठबंधन की दुहाई दे रही हैं उससे साफ जाहिर है कि उत्तर प्रदेश में हाल के हुए सभी उपचुनाव में उनकी खास रणनीति का परीक्षण बखूबी सफल हो चुका है। इतना ही नही उत्तर प्रदेश के अलावा हाल ही में कर्नाटक के चुनावों में भी उनकी रणनीति काफी सफल रही जिसकी बानगी है कि वहां भाजपा को मायूसी हाथ लगी थी वहीं कुमारास्वामी सरकार बनाने में सफल रहे। साथ ही काफी हद तक उनका पारंपरिक वोटर वापस उनके साथ आ चुका है।
अगर जानकारों की मानें तो मायावती ने जिस तरह से कल फिर गठबंधन को लेकर जो तेवर दिखाये हैं उसका मतलब धीरे धीरे समझ में आने लगा है क्योंकि आज ही शिवपाल ने भी गठबंधन को लेकर जो इशारे दिये हैं। दोनों को अगर गौर से समझा जाये तो काफी कुछ समझ में आता नजर आयेगा। दरअसल मौजूदा हालात में जिस तरह से समाजवादी पार्टी की पारिवारिक कलह के चलते हालत है उसने बसपा सुप्रीमो को काफी कुछ सोचने का मजबूर कर दिया है।
ऐसे में जब उनकी रणनीति बेहद कारगर साबित हो चुकी है तो वो देश के अहम सूबे उत्तर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपनी उम्मीदवारी पेश करना चाहेंगी हालांकि अखिलेश मौजूदा हालातों में काफी हद तक झुकने को तैयार हैं लेकिन जिस हद तक सम्मानजनक सीटें बसपा सुप्रीमों चाहती हैं उस हद तक संभवतः अखिलेश से बात बन पाना संभव न हो सके। तो ऐसे में वो सपा के विकल्प के तौर पर शिवपाल के सेक्यूलर मोर्चे को सहयोगी बना सकती हैं।
ज्ञात हो कि पूर्व में बसपा सुप्रीमों ने समाजवादी परिवार की कलह के दौरान कहा था कि मुलायम अपने पुत्र मोह में अपने भाई शिवपाल के साथ नाइंसाफी कर रहे हैं। यानि कहीं न कहीं शिवपाल के प्रति उनका नरम रवैये को उजागर करता है। बहरहाल गठबंधन का ऊंट किस करवट बैठेगा ये तो आने वाला वक्त बतायेगा। लेकिन इतना तो साफ है कि जल्द ही बसपा सुप्रीमों की जोरदार और असरदार नई रणनीति सामने आयेगी। जो प्रदेश ही नही बल्कि देश की सियासत को चौंकायेगी।