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M-777 और K-9 आर्टिलरी गन शामिल होने से भारतीय सेना की बढ़ी और ताकत

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नई दिल्ली। थलसेना में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने शु्क्रवार को तीन प्रमुख तोप प्रणालियों को शामिल किया जिनमें ‘एम777 अमेरिकन अल्ट्रा लाइट होवित्जर’ और ‘के-9 वज्र’ शामिल हैं। ‘के-9 वज्र’ एक स्व-प्रणोदित तोप है। थलसेना में शामिल की गई तीसरी तोप प्रणाली ‘कॉम्पोजिट गन टोइंग व्हीकल’ है।

इस बाबत जानकारी देते हुए एक अधिकारी ने बताया कि अगले साल के मध्य तक ‘एम777’ और ‘के-9 वज्र’ की पहली रेजिमेंट बनाने की तैयारी से पहले इन तोपों को थलसेना में शामिल किया गया है। इस रेजिमेंट में 18 ‘एम777’ और 18 ‘के-9 वज्र’ तोपों को शामिल करने की योजना है।

145 ‘एम777’ तोपों की खरीद के लिए भारत ने नवंबर 2016 में अमेरिका से 5,070 करोड़ रुपए की लागत का एक अनुबंध किया था। विदेशी सैन्य बिक्री कार्यक्रम के तहत यह अनुबंध किया गया था। इराक और अफगानिस्तान में इस्तेमाल हुए ‘एम777’ तोपों को हेलीकॉप्टरों द्वारा आसानी से ऊंचाई वाले इलाकों में ले जाया जा सकता है।

भारतीय सेना को नवंबर 2019 में 40 और नवंबर 2020 में 50 व्रज तोपें मिल जाएंगी। पहली बार भारतीय निजी क्षेत्र स्वदेशी के9 वज्र की पहली रेजिमेंट को तैयार कर रहा है। यह पहली इस तरह की तोप हैं जो स्देशी हैं। उम्मीद लगाई जा रही है कि जुलाई 2019 तक के9 वज्र की पूरी खेप बनकर तैयार हो जाएगी। इन तोपों की मारक क्षमता की बात करें तो ये 28-38 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम हैं। यह तोप महज तीस सेकेंड में अनवरत तीन राउंड की गोलाबारी कर सकती है।

तीन मिनट में 15 राउंड की भीषण गोलाबारी कर सकती है और 60 मिनटों में लगातार 60 राउंड की फायरिंग भी कर सकती है। इसके अलावा, सेना कुल 145 एम777 होवित्जर तोपों की साथ रेजिमेंट भी बनाएगी। अगस्त 2019 की शुरुआत में पांच तोपें सेना को सौंप दी जाएंगी। जबकि यह प्रक्रिया पूरी होने में 24 महीनों का वक्त लगेगा। पहली रेजिमेंट अगले साल अक्टूबर में पूरी हो जाएगी। 30 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली इस तोप को हेलीकॉप्टरों या विमान से एक से दूसरे स्थान पर पहुंचाया जा सकेगा।

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