डेस्क। महज साढ़े चार सालों में ही मोदी और भाजपा के चाणक्य अमित शाह का जादू काफी हद तक दम तोड़ता नजर आने लगा है और वहीं कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी की महज कुछ ही वक्त की लगन और मेहनत का असर सामने आने लगा है। वैसे तो गुजरात और कर्नाटक के चुनावों में कांगेस द्वारा मिली टक्कर से ही भाजपा को हकीकत को जान लेना चाहिए था। लेकिन सत्ता के अहंकार में डूबी भाजपा और उसके सर्वेसर्वा प्रधानमंत्री मोदी और चाणक्य अमित शाह सब कुछ हल्के में लेते रहे। जिसकी बानगी है कि आज जिन पांच राज्यों के नतीजों के रूझान सामने आएं है। उसमें भाजपा के हाथ में रहे तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में जनता ने उसको काफी हद तक न सिर्फ आइने दिखा दिये बल्कि अपनी ताकत के मायने भी जता दिये। जोकि काफी हद तक 2019 के लोकसभा चुनावों में साफ तौर पर भाजपा के लिए खतरे की घंटी ही माना जाएगा।
गौरतलब है कि इन नतीजों से जहां कांग्रेस को संजीवनी मिलना तय है वहीं भाजपा के लिए आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए एक बड़ी खतरे की घंटी है। क्योंकि लोकसभा चुनावों से ठीक पहले आए इनके खास मायने हैं, क्योंकि इसके बाद बीच में कोई चुनाव नहीं है, सीधे मई 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं। इन चुनावों में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी है। वहीं अगर इन पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनावों में जनता के बदलते रूख को गंभीरता से देखा जाये तो उसके हिसाब से वहां लोकसभा की कुल 83 सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इनमें से 75 फीसदी अर्थात 62 सीटें अकेले भाजपा ने जीत ली थी। इनमें से यदि तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ की बात करें तो 2014 के चुनावों में भाजपा को राजस्थान में 25 में से 25, मध्य प्रदेश में 29 में से 27 तथा छत्तीसगढ़ में 11 में से दस सीटें भाजपा ने जीती थी।
ज्ञात हो फिलहाल जैसा कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों के अब तक जो रुझान आए हैं वह साफ जता रहे हैं कि कांग्रेस की हालत पहले से काफी सुधरी है वहीं भाजपा की हालत बिगड़ती नजर आ रही है। मध्यप्रदेश में जहां शिवराज के राज को इस बार कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है तो राजस्थान में बसुन्धरा का ख्वाब रह गया धरा का धरा। जबकि छत्तीसगढ़ में रमन सरकार का वहां की जनता ने कर दिया दमन। एक तरह से कुल मिलाकर भाजपा के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब न सिर्फ एक बड़ी चुनौती साबित हो रहे हैं बल्कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो तय है कि भाजपा के लिए पनौती भी साबित होते नजर आ रहे हैं। हालांकि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मुद्दे अलग-अलग होते हैं और उसमें मतदाताओं की सोच भी अलग-अलग होती है। एक उदाहरण यह भी है कि 2003 में इन तीनों राज्यों में भाजपा ने चुनाव जीता था लेकिन 2004 का लोकसभा चुनाव वह हार गई थी।इसलिए यह कोई आखिरी पैरामीटर नहीं है। लेकिन फिर भी विधानसभा चुनावों के नतीजे भाजपा के लिए संकेत तो हैं।
साफ है कि इन चुनावों के नतीजों से पिछले कुछ समय से लगातार कमजोर पड़ रही कांग्रेस को संजीवनी मिलेगी। संभावना है कि कांग्रेस की इस बढ़त से लोकसभा चुनाव में कुछ और दल यूपीए के साथ आएं। अगले चुनावों के लिए क्षेत्रीय स्तर पर गठबंधन भी बढ़ सकता है। इसके फायदा यह है कि आम चुनावों के लिए छोटे दल कांग्रेस के नेतृत्व में एकजुट हो सकते हैं। दूसरी तरफ भाजपा के लिए ये नतीजे चिंताजनक हैं, उसे लोकसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीति बनानी होगी। दरअसल जिस तरह से किसान आंदोलित है और प्रधानमंत्री मोदी का अपने चहेते उधोगपतियों के प्रति नरम रूख और लगाव उजागर हो रहा है। उससे जनता बेहद ही खफा है। वहीं नोटबंदी और जीएसटी को लेकर वैसे ही लोगों में अब तक आक्रोश बना हुआ है। इसके अलावा कई संवैधानिक संस्थाओं खासकर सीबीआई और आरबीआई का मामला मोदी सरकार को भारी पड़ना तय हैं। ऐसे में कथित तौर पर खूद मोदी के ही चहेते और आरबीआई के गर्वनर उर्जित पटेल द्वारा जिस तरह से इस्तीफा दिया गया। वो कहीं न कहीं जनता में अलग ही संदेश देने वाला है।