भोपाल! मध्य प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस अभी ठीक तरह से जश्न भी नहीं मना पाई कि पार्टी के अंदरखाने कुर्सी की जंग शुरू हो चुकी है. एक तरफ सीएम की घोषणा के बाद शुरू हुआ विवाद दिल्ली जा पहुंचा है, वहीं मंत्री पद और प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी लॉबिंग तेजी से चल रही है. यहां भी दिग्गज नेताओं का ही बोलबाला है और जैसे सीएम के लिए कमलनाथ के नाम को दिग्गजों ने आगे बढ़ाया और फिर घोषणा से पहले छाई शांति बाद में तूफ़ान ले आई. अब ठीक ऐसे ही प्रदेश अध्यक्ष कौन बनेगा इसके लिए तेजी से चर्चा चल रही है.
लम्बे समय से कांग्रेस सत्ता से बाहर रही, जिसके चलते पदों की लालसा भी बढ़ी है. नेताओं ने जी जान से सरकार बनाने के लिए हर संभव कोशिश की और वनवास ख़त्म करने में सफल रहे. अब पावर में आने के बाद दिग्गज नेता भी अपने को खास पद पर देखना चाहते हैं. हालाँकि खुलकर सभी यही कहते हैं कि उन्हें पद की चाहत नहीं है लेकिन अंदरखाने क्या चल रहा है यह भी छुपा नहीं है. सीएम के तौर पर कमलनाथ के शपथ लेने से पहले सिंधिया को लेकर मचे बवाल के बाद प्रदेश अध्यक्ष को लेकर पेंच फंस गया है. क्यूंकि पहले ऐसा माना जा रहा था कि कमलनाथ का नाम सीएम के लिए तय होने के बाद किसी ऐसे नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए जिसे संगठन की समझ हो और सर्वमान्य हो ताकि जमीनी स्तर पर पार्टी मजबूती से खड़ी रहे क्यूंकि कुछ ही महीनों में लोकसभा चुनाव है और अब हाईकमान की उम्मीदें मध्य प्रदेश से बढ़ गई हैं. लेकिन सिंधिया समर्थकों की जिद के बाद प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में उनका भी नाम को लेकर चर्चा तेज है. लेकिन यह भी जगजाहिर है कि जब सीएम के लिए उम्र आड़े आई तो प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी तो यही फैक्टर बताया जा सकता है. दूसरा अन्य गुट के नेता इसका विरोध कर सकते हैं. दूसरी बड़ी स्तिथि होगी कि दो बड़े पदों पर ताकतवर नेताओं के होने से टकराव की स्तिथि भी बनेगी. इसलिए अन्य नामों पर भी विचार किया जा सकता है.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लिए शुरू हुई इस खींचतान में अजय सिंह का नाम भी तेजी से आगे आ गया है. कमलनाथ के नाम की घोषणा के बाद अजय सिंह के समर्थक भी सक्रीय हो गए हैं और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की मांग कर रहे हैं. हालाँकि अजय सिंह लम्बे समय से कांग्रेस को मजबूत करने में जुटे हैं और शिवराज सरकार के खिलाफ हर मोर्चे पर कार्यकर्ताओं के साथ खड़े रहे और लम्बी लड़ाई लड़ी. जिसके चलते उनको लेकर भी सहमति बन सकती है. उनका नाम इसलिए भी आगे लाया गया है ताकि सिंधिया को रोका जा सके. अंदरखाने इसकी भी चर्चा है कि अगर ऐसे ही विवाद रहा तो दिग्विजय के पास प्रदेश कांग्रेस की कमान जा सकती है. चुनाव में पार्टी हाईकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को पार्टी नेताओं के बीच समन्वयक की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी सौंपी थी, जिसे उन्होंने बखूभी निभाया. चुनाव में जीत के बाद पार्टी सरकार बनाने जा रही है. कांग्रेस विधायक दल की बैठक में भी दिग्विजय की अहम भूमिका रही है. क्योंकि 30 से ज्यादा विधायक दिग्विजय सिंह के समर्थक माने जा रहे हैं. इसलिए एक बार फिर दिग्विजय का जलवा शुरू हो गया है. हालाँकि उनके साथ कई विवाद भी जुड़े हैं जिससे नुकसान भी हो सकता है. वहीं अगर स्तिथि बिगड़ी तो सिंधिया भी खुद अपने करीबी नेता का नाम आगे बढ़ा सकते हैं, जिनमे रामनिवास रावत शामिल हैं . इसके अलावा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, जीतू पटवारी के नाम भी चर्चा में हैं, फिलहाल इस मामले में संगठन टिप्पणी करने से बच रहा है, जो भी फैसला होगा आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए ही होगा ताकि कमलनाथ के साथ नया प्रदेश अध्यक्ष बेहतर समन्वय के काम कर सके और ज्यादा से ज्यादा सीटें जीता सके. सीएम के लिए सिर्फ दो नामों में लड़ाई थी, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के दौड़ में कई दिग्गजों के नाम सामने आने के बाद पेंच फंस गया है.