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विपक्षी महागठबंधन का दिखा बखूबी असर लेकिन फिर एक बार रह गई वो ही पुरानी कसर

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नई दिल्ली। भाजपा और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस तथा तमाम अन्य क्षेत्रीय दलों की महा गठबंधन की कवायद ने एक बार फिर बखूबी जोर तो पकड़ा है। लेकिन हर बार की तरह से इस बार भी इस महागठबंधन में एक बेहद ही अहम कसर का असर दिखाई दे रहा है। दरअसल देश के सबसे अहम और बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में ही इस विपक्षी महागठबंधन को हाल फिलहाल सहयोग नही मिल नही पा रहा है। जिसकी बानगी है कि आज राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के शपथ ग्रहण समारोह में जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत तमाम अन्य विपक्षी दलों के नेताओं का जमावड़ा लगा। वहीं एक बार फिर बसपा सुप्रीमो मायावती तथा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस महागठबंधन की कवायद से दूरी बनाए रखी।

गौरतलब है कि  सोमवार को राजस्थान में अशोक गहलोत ने सीएम पद और सचिन पायलट ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली। शपथ ग्रहण समारोह में तमाम विपक्षी दल के नेता नजर आए। वहीं एक बार फिर बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव नदारद रहे। इन दोनों नेताओं की इस दौरान दूरी बनाए रखने से जहां विपक्षी महागठबंधन की कवायद को झटका लगता लगता नजर आ रहा है। वहीं एक बार फिर महागठबंधन का मामला देश के सबसे अहम और बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में ही अटका नजर आ रहा है।  बेहद अहम और गंभीर सवाल ये है कि अभी महज छह या सात महीने पहले ही जब ये दोनों नेता कर्नाटक पहुंच गए तो राजस्थान पहुंचने में भला क्या दिक्कत थी?  उस वक्त खुद अखिलेश ने वो तस्वीर ट्वीट की थी जिसमें वह नेताओं से गर्मजोशी से मिलते नजर आ रहे थे।

ज्ञात हो कि कर्नाटक में इसी साल मई 2018 में कांग्रेस-जेडीएस सरकार में कुमारस्वाणी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान जो एक बड़ी और साफ तस्वीर उभर कर सामने आई थी उससे काफी हद तक ऐसा लगने लगा था कि अब भाजपा ओर मोदी के खिलाफ महगठबंधन लगभग तैयार और तय हो चुका है। क्योंकि जिस तरह से काफी वक्त के बाद बिखरे और अलग थलग पड़े विपक्ष के तमाम दलों का कर्नाटक में जमावड़ा लगा था। वो अपने आप में बेहद अहम और बड़ी बात थी। इसी के चलते तमाम सियासी जानकारों ने भी इसे 2019 आम चुनाव के लिए विपक्ष की एकता का सबसे बड़ा मंच बताया था।

लेकिन वहीं बीते छह महीने के दौरान जिस तरह से हालात और घटनाक्रम बदले उसको देखते हालांकि कई बार महागठबंधन की कवायद को झटके लगे लेकिन हाल ही के पांच राज्यों के चुनाव के दौरान जिस तरह से कांग्रेस ने प्रदर्शन किया और खासकर राजस्थान मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा के हाथों से सत्ता छीन ली। उससे तमाम क्षेत्रीय विपक्षी दलों में एक बार फिर एक बड़ी आस जगी और उनको लगने लगा कि कांग्रेस वाकई वापसी की ओर अगसर है और उसके साथ महागठबंधन का हिस्सा बनने में फायदा ही है। और महागठबंधन के तहत तमाम विपक्षी दल एक साथ आने लगे लेकिन सोमवार को राजस्थान में शपथ ग्रहण समारोह में जो जमावड़ा लगा उसमें कुछ प्रमुख चेहरे गायब थे। इसी ने अब कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

जब ये दोनों नेता कर्नाटक पहुंच गए तो राजस्थान पहुंचने में भला क्या दिक्कत थी? तो क्या 2019 के महागठबंधन में दरार अभी से दिखने लगी है? राहुल गांधी और अखिलेश के बीच मतभेद तो हाल के हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद से ही दिखने लगे थे। जिसकी बानगी ही है कि अखिलेश फिलहाल उनसे दूरी ही बनाए रखना चाहते हैं। वहीं अगर बसपा सुप्रीमो मायावती की करी जाये तो उनका भी इस तरह से महागठबंधन से दूरी बनाए रखना भी उनका बेहद ही रहस्यमयी पैंतरा ही है। क्योंकि जिस तरह से उन्होंने महागठबंधन तो दूर बल्कि सपा से गठबंधन के लिए तक अभी अपना रूख साफ नही किया है उससे उनके अगले कदम के बारे में कुछ भी कह पाना मुश्किल ही नही बल्कि नामुमकिन ही नजर आ रहा है।

वहीं अगर तमाम सियासी जानकारों की मानें तो उनके अनुसार अगर गंभीरता से देखें तो चाहे वह बसपा हो या फिर सपा इन दोनों ही दलों की जो असली पकड़ है वो उत्तर प्रदेश में ही है वहीं जब अभी उनमें अभी तक आपस में ही सीटों को लेकर कुछ भी तय नही हो पाया है। ऐसे में अगर वो महागठबंधन का हिस्सा बनते हैं तो उनको सीटों को लेकर और भी बंटवारा करना पड़ेगा जिससे कुल उनका ही नुक्सान होना है। वहीं जिस तरह से हाल फिलहाल कांग्रेस का प्रदर्शन हाल के चुनावों के दौरान तेजी से सुधर रहा है राहुल का उभार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस में फिर से जान फूंक सकता है। जिसको देखते बसपा और सपा दोनों ही और भी आशंकित हो चले हैं। संभवतः ये ही वजहें हैं कि उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा ऐसे में कोई भी खतरा मोल लेना नही चाह रहे हैं।  क्योंकि फिलहाल वो दोनों ही हाल में बिगड़ चुकी अपनी हालत को संवारने में लगे हैं।

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