नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष की परिपक्वता एक बार फिर उस वक्त उभर कर सामने आई जब पिछले काफी दिनों से जारी कर्नाटक में सियासी संकट राहुल और मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की मिली जुली कोशिशों से काफी हद तक फिलहाल टल गया है। माना जा रहा है कि फिलहाल असंतुष्ट विधायकों की की नाराजगी दूर हो गई है और वो राहुल ओर कुमारस्वामी की बातों से सहमत भी हो गए हैं।
पार्टी के शीर्ष सूत्रों की अगर मानें तो उनके अनुसार राहुल से मश्विरा करने के बाद कुमारस्वामी ने पार्टी के सभी नाराज अधिकांश विधायकों से सीधी बातचीत की। इन कांग्रेसी विधायकों को कथित तौर पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के ‘कब्जे’ में बताया जाता है। दो निर्दलीय उम्मीदवारों द्वारा सरकार को समर्थन वापस लेने से चिंतित कुमारस्वामी ने भाजपा के खिलाफ कड़ा कदम उठाया और गांधी की रणनीतिक मंजूरी मिलने के बाद कांग्रेस के विधायकों को समझाने का बीड़ा उठाया।
बताया जाता है कि राहुल गांधी की सलाह पर मुख्यमंत्री ने असंतुष्ट विधायकों को उनके निर्वाचन क्षेत्रों में अधिक आवंटन तथा उनके लाभ के लिए अन्य कदम उठाने का भी भरोसा दिया ताकि राज्य में जारी राजनीतिक संकट से बाहर निकला जाय। इसका मतलब यह भी हुआ कि कांग्रेस आलाकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री तथा गठबंधन सरकार की संयुक्त समन्वय समिति के प्रमुख सिद्दारामैया और उप मुख्यमंत्री जी. परमेश्वर समेत राज्य नेतृत्व को दरकिनार कर दिया है।
सूत्रों ने कहा कि असंतुष्ट कांग्रेस विधायकों के पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल समेत राज्य के किसी भी नेता से बात करने से इंकार के बाद ही मुख्यमंत्री सात माह पुरानी जद (एस) -कांग्रेस गठबंधन सरकार को बचाने के लिए खुद को आगे ले गए। कांग्रेस अध्यक्ष से समर्थित मुख्यमंत्री ने फोन पर सभी असंतुष्ट कांग्रेस विधायकों से बात की और उनकी शिकायतों को ध्यान से सुना।
इस बीच अपने राजनीतिक खेल में ‘बदनामी’ के बाद भाजपा नेता बचाव की मुद्रा में आ चुके हैं तथा उन्होंने कहा कि गठबंधन सरकार को गिराने का कोई प्रयास नहीं किया गया। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता, वामन आचार्य ने इस बात से इंकार किया कि कांग्रेस नेताओं का ‘शिकार’ बनने के भय से 101 भाजपा विधायकों को हरियाणा ले जाया गया था। उन्होंने कहा कि हमारे विधायकों को पार्टी के कार्यक्रम में ले जाया गया था और उसका राज्य सरकार को गिराने की कवायद से कोई लेना-देना नहीं था।