नई दिल्ली। आगामी लोकसभा चुनावों का नजदीक आने के साथ ही राम मंदिर मुद्दे पर सियासत तेजी से गर्माने लगी है। इसी क्रम में बिश्वि हिन्दू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार के एक बड़े बयान ने सियासी गलियारों ही नही वरन आम जनमानस में एक तरह से जबर्दस्त खलबली मचा दी। हालांकि मामले के जोर पकड़ने पर आलोक कुमार ने सफाई देते हुए बात को घुमा दिया है। लेकिन एक तरह से उनके द्वारा कही गई बात के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
गौरतलब है कि राम मंदिर मुद्दे पर आलोक कुमार ने कहा था कि लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में राम मंदिर का मुद्दा शामिल करती है तो समर्थन देने पर विचार किया जा सकता है। आलोक कुमार ने प्रयागराज कुंभ में एक कार्यक्रम में कहा था कि राम मंदिर के लिए जिन्होंने खुले तौर पर वादा किया है, अगर कांग्रेस घोषणा पत्र में शामिल करे कि मंदिर बनाएंगे तो कांग्रेस को समर्थन देने के बारे में भी विचार करेंगे। उसने जो प्रतिबंध लगाया है कि संघ के स्वयंसेवक कांग्रेस में नहीं जा सकते उसको वापस ले। ये केवल जनेऊ पहनने से नहीं होगा।
ज्ञात हो कि विहिप की तरफ से यह बयान ऐसे समय में आया है जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गर्माया हुआ है। आलोक कुमार ने कहा, सरकार की मजबूरियां क्या है वो तो हम नहीं जानते, लेकिन संभवत: मोदी सरकार के इस कार्यकाल में कानून आने की संभावना नहीं है। हम देश की सारी परिस्थितियों को संतों के सामने रखेंगे और पूछेंगे कि आगे क्या करना है। संत जैसा मार्गदर्शन करेंगे इस अभियान को आगे बढ़ाएंगे। मैं आपसे कहूं अभी तुरंत आम चुनाव से पहले मंदिर बने इसकी संभावना अब ज्यादा नहीं है।
लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि बीजेपी राम मंदिर निर्माण को लेकर अध्यादेश लेकर आएगी, लेकिन ANI को दिए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बात को सिरे नकारते हुए कहा, बीजेपी राम मंदिर को लेकर अभी कोई अध्यादेश नहीं लाने वाली है। इसके बाद से RSS और VHP की ओर से लगातार बयानबाजी की जाने लगी।
हालांकि नए साल के पहले सप्ताह में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राम मंदिर के निर्माण को लेकर बड़ा बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि अयोध्या राम मंदिर का मसला अभी कोर्ट में है। साथ ही उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में नौकरी और किसानों से जुड़े मुद्दे पर अहम होंगे। हाल ही में संघ के सरकार्य वाहक भैयाजी जोशी ने राम मंदिर को लेकर मोदी सरकार पर तंज कसते हुए कहा था कि मंदिर का निर्माण 2025 तक होगा।
वहीं अब आलोक कुमार ने सफाई पेश करते हुए कहा है कि वीएचपी ने कांग्रेस को समर्थन का कोई प्रस्ताव नहीं दिया है। राममंदिर पर दिए अपने बयान के बाद आलोक कुमार ने कहा, मेरे कथन का गलत अर्थ निकाला गया है। ‘उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस का बदलना और उसे समर्थन देना एक हाइपोथेटिकल सवाल है। अगर कांग्रेस अपने मेनिफेस्टो में राम मंदिर को शामिल करती है तो स्वागत है, लेकिन उसे समर्थन देने का सवाल नहीं उठता है।’
जबकि अगर देखा जाये तो पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे राजीव गांधी द्वारा मंदिर के ताले खुलवाने के बाद बड़ी संख्या में लोग और हिन्दू संगठन उनके साथ आ गए थे। जिसके बाद कांग्रेस जमीन से लेकर संसद तक मजबूत हुई थी। ऐसे में अगर कांग्रेस राम मंदिर के लिए अपने दरवाजे खोलती है और अपने घोषणापत्र में वीएचपी की बात को ध्यान में रखते हुए मंदिर मसले को शामिल कर लेती है तो बीजेपी को आगामी लोकसभा चुनाव में बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।
वैसे अगर गंभीरता से देखें तो कहीं न कहीं राम मंदिर को लेकर कांग्रेस धीमी आवाज में ही सही लेकिन मसले पर समर्थन करती रही है। हाल ही में उत्तराखंड के वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत ने कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद ही हो पाएगा। रावत ने कहा था, ‘हमलोग नीतियों और संविधान में आस्था रखते हैं। अयोध्या में राम मंदिर तभी बन पायेगा जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनेगी। यह पक्की बात है। ‘
इसी प्रकार हाल ही में उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर ने कहा था कि राम मंदिर अयोध्या में नहीं बनेगा तो और कहां बनेगा. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा, ‘अयोध्या में मंदिर कहां बनेगा। यह फैसला कोर्ट में ही तय हो सकता है। उन्होंने कहा था कि भगवान राम के मंदिर को लेकर कौन नहीं चाहता है। चाहे वो हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो या इसाई. हर व्यक्ति चाहता है कि राम मंदिर बने।’