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महाराष्ट्र में अभी लागू नहीं होगा नागरिकता संशोधन कानून: सीएम उद्धव ठाकरे

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नई दिल्ली. नागरिकता संशोधन कानून को लेकर घमासान मचा हुआ है. कई राज्य इससे अपने यहां लागू करने से इंकार कर रहे हैं. पश्चिम बंगाल, केरल और पंजाब ने सीएए को अपने यहां लागू करने से मना कर दिया है. वहीं इस कड़ी में महाराष्ट्र भी आता नजर आ रहा है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा है कि जब तक नागरिकता संशोधन कानून संविधान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता तब तक कानून लागू नहीं किया जाएगा.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा, कुछ लोग नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ कोर्ट में गए हैं वहां क्या फैसला होता है उस देखकर हम निर्णय लेंगे.

उन्होंने कहा कि जबतक नागरिकता संशोधन कानून संविधान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता तब तक कानून महाराष्ट्र में लागू नहीं होगा.

बीते गुरुवार को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नागरिकता संशोधन विधेयक को भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के खिलाफ बताया और कहा कि उनकी सरकार इस विधेयक को अपने राज्य में लागू नहीं करेगी.

केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने भी नागरिकता संशोधन विधेयक को असंवैधानिक बताया और कहा कि उनका राज्य इसे नहीं अपनाएगा. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार भारत को धार्मिक तौर पर बांटने की कोशिश कर रही है. ये समानता और धर्मनिरपेक्षता को तहस-नहस कर देगा.

वहीं पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी नागरिकता संशोधन कानून लागू करने से मना कर दिया है. ममता बनर्जी ने कहा कि हम कभी भी राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) और नागरिकता कानून को बंगाल में अनुमति नहीं देंगे. हम नागरिकता कानून में संशोधन को लागू नहीं करेंगे, भले ही इसे संसद ने पारित किया है. भाजपा राज्यों को इसे लागू करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती.

हालांकि कानून विशेषज्ञों की मानें तो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार को नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 पर अपनी मुहर लगाकर इसे क़ानून बनाया है. आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित होने के साथ ही यह कानून लागू भी हो गया है. अब चूंकि यह कानून संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत संघ की सूची में आता है. तो यह संशोधन सभी राज्यों पर लागू होता है और राज्य चाहकर भी इस पर कुछ ज़्यादा नहीं कर सकते.

संविधान की सातवीं अनुसूची राज्यों और केंद्र के अधिकारों का वर्णन करती है. इसमें तीन सूचियां हैं संघ, राज्य और समवर्ती सूची. नागरिकता संघ सूची के तहत आता है. लिहाजा इसे लेकर राज्य सरकारों के पास कोई अधिकार नहीं है. कुल मिलाकर अब सबकी नजर कोर्ट पर है कि वो इसपर क्या फैसला लेती है.

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