नयी दिल्ली. नियुक्ति एवं पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के पिछले सप्ताह दिये गये फैसले पर विपक्षी दलों की चिंताओं के जवाब में केन्द्र सरकार ने सोमवार को राज्यसभा में कहा कि फैसले पर उच्च स्तरीय विचार विमर्श कर उचित फैसला किया जायेगा, लेकिन अदालत के फैसले पर पुनरीक्षण याचिका दायर करने की मांग कर रहे विपक्षी दलों ने सरकार के जवाब को नाकाफी बताते हुये सदन से बहिर्गमन किया.
उच्चतम न्यायालय के फैसले पर सरकार से स्पष्टीकरण देने की विपक्षी दलों की मांग पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने उच्च सदन में कहा, उच्चतम न्यायालय ने सात फरवरी को प्रोन्नति में आरक्षण के बारे में निर्णय दिया है. यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसको ध्यान में रखते हुये सरकार इस पर उच्चस्तरीय विचार विमर्श कर रही है.
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने सात फरवरी को दिये अपने एक फैसले में कहा कि पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है . उन्होंने स्पष्ट किया, इस मामले में भारत सरकार को ना तो कभी पक्षकार बनाया गया और ना ही भारत सरकार से शपथ पत्र मांगा गया. गहलोत ने कहा कि यह मामला उत्तराखंड सरकार के द्वारा पांच सितंबर 2012 को लिये गये निर्णय के कारण उत्पन्न हुआ, जिसमें उत्तराखंड में प्रोन्नति में आरक्षण लागू नहीं करने का फैसला किया गया था. उन्होंने कहा कि यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि 2012 में उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी. गहलोत ने कहा कि केन्द्र सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिये समर्पित और प्रतिबद्ध है. इस विषय पर उच्च स्तरीय विचार के बाद सरकार समुचित कदम उठायेगी.
इस पर कांग्रेस के सदस्य पी एल पुनिया ने 2012 में उक्त फैसला उत्तराखंड की तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा किये जाने की हकीकत को स्वीकार करते हुये कहा कि अदालत में राज्य की मौजूदा भाजपा सरकार ने भी कोई पैरवी नहीं की. भाकपा के बिनॉय विस्वम ने सरकार से पूछा कि क्या सरकार इस फैसले पर उच्चतम न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर करेगी. द्रमुक के तिरुचि शिवा ने भी सरकार से उच्चतम न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर करने की मांग की. बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि 2012 में उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार ने नियुक्ति और प्रोन्नति में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने से इंकार किया था और मौजूदा भाजपा सरकार ने भी पिछले फैसले को पलटने के बजाय इसे स्वीकार कर लिया.
उन्होंने सरकार से पूछा कि क्या इस मामले में केन्द्र सरकार उच्चतम न्यायालय में पक्षकार बनेगी? नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सरकार इस मुद्दे की गंभीरता को नहीं समझ रही है. उन्होंने कहा कि विपक्ष को उम्मीद थी कि सरकार इस फैसले को निष्प्रभावी करने के लिये संसद से कानून पारित करने की घोषणा करेगी. सपा के रामगोपाल यादव ने सरकार से इस मामले में तत्काल पुनरीक्षण याचिका दायर कर मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर न्यायपालिका में भी आरक्षण लागू करने का फैसला करे. उन्होंने कहा कि जब तक न्यायपालिका में आरक्षण व्यवस्था लागू नहीं होगी तब तक आरक्षण पर कुठाराघात करने वाले फैसले आते रहेंगे.
तृणमूल कांग्रेस के सुखेन्दु शेखर राय ने पूछा कि क्या सरकार इस मामले में कानूनी दखल देते हुये अदालत के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिये अध्यादेश लायेगी? टीआरएस सदस्य के केशव राव ने सरकार के जवाब को गैरजिम्मेदाराना बताते हुये कहा कि सरकार को इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करना चाहिये. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने उच्चतम न्यायालय के फैसले को अन्यायपूर्ण बताते हुये कहा कि आरक्षण के विषय को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिये. केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने इसे गंभीर मामला बताते हुये न्यायपालिका में भी आरक्षण व्यवस्था लागू करने की जरूरत पर बल दिया.
उन्होंने भी आरक्षण से संबंधित कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की पैरवी करते हुये सरकार की ओर से आश्वासन दिया कि केन्द्र सरकार आरक्षण को कोई आंच नहीं आने देने के लिये प्रतिबद्ध है. उच्च सदन में सदस्यों की चिंताओं का जवाब देते हुये गहलोत ने कहा, सरकार आरक्षण व्यवस्था के लिये प्रतिबद्ध है. फिलहाल मैं यही कह सकता हूं कि सरकार इस बारे में उच्चस्तरीय विचार कर उचित निर्णय करेगी. गहलोत के जवाब पर असंतोष जताते हुये कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल सपा, बसपा, द्रमुक, भाकपा, माकपा, तृणमूल कांग्रेस और टीआरएस के सदस्य सदन से बहिर्गमन कर गये.