भोपाल. पिछले साल अक्टूबर-नवंबर के बीच किसानों ने गेहूं-चने की फसल बोई थी. खेतों में फसल लहलहा रही थी. कटाई की तैयारियां शुरू हो गईं थीं. होली तक फसल कटने लगती लेकिन इससे पहले ही कुदरत का कहर बरस गया. अचानक आई आंधी, बारिश और ओलों ने खेतों को तबाह कर दिया. किसान की सारी मेहनत बर्बाद हो गई. भोपाल, सीहोर, विदिशा होशंगाबाद सहित कई जिलों में गेहूं की फसल आड़ी पड़ गई तो चने पर ओलों की सफेद चादर बिछ गई.
भोपाल में आंधी की चपेट में आकर गिरे 40 वर्षीय सिक्योरिटी गार्ड मांगीलाल मालवीय की मौत हो गई. भिंड, मुरैना और छतरपुर में आकाशीय बिजली की चपेट में आकर 5 लोगों और छिंदवाड़ा में 12 गायों की जान चली गई.भोपाल में करीब पांच मिनट तक कहीं काबुली चने के बराबर और कहीं बेर के आकार के ओले गिरे. साकेत नगर, बावड़िया कलां, होशंगाबाद रोड, कोलार समेत कई इलाकों की कुछ काॅलोनियों के बगीचों और छतों पर ओले बिछ गए.
70 मिनट तक नहीं पिघले ओले:
भोपाल में गिरे आेले 70 मिनट तक नहीं पिघले. मौसम वैज्ञानिक एसके नायक के मुताबिक ओले गिरते वक्त हवा की रफ्तार ज्यादा थी इसके बाद हवा की गति बिलकुल कम हो गई. इस वजह से वाष्पीकरण नहीं हो सका और ओले जल्दी नहीं पिघले. आेले लेटेंट हीट यानी गुप्त उष्मा छोड़ते हैं. इसके कारण इनके आसपास तापमान ज्यादा हो जाता है.
राजधानी में फरवरी में पहली बार इतने बड़े ओले गिरे. 4 साल पहले 26 फरवरी 2014 को 3.96 मिमी बारिश हुई थी. पिछले साल भी फरवरी में बारिश हुई थी. इससे पहले 1986 में फरवरी महीने में सबसे ज्यादा 5.48 मिमी पानी बरसा था.
नुक्सान ज्यादा नहीं हुआ
कुछ जिलों से जो जानकारी मिली है, उसमें पता चला है कि ओले का आकार ज्यादा बड़ा नहीं था. इसलिए नुकसान की संभावनाएं कम हैं. फिर भी ओला प्रभावित गांवों में नियम के अनुसार राहत व मुआवजा राशि किसानों की दी जाएगी.