- हवा में जहर का असर बढ़ता ही जा रहा
- दिल्ली रहने योग्य शहर नहीं
- सरकार की कोई स्पष्ट रणनीति भी नहीं
नई दिल्ली। बड़ी ही हैरत और अफसोस की बात है कि जो हमारे देश की राजधानी है और जहां देश ही नही बल्कि विदेशों की बड़ी हस्तियां और उनकी बस्तियां हैं अर्थात तमाम बड़े मंत्रियों और अफसरों के आवास समेत दूतावास हैं बावजूद इसके वहां की हवा में जहर का असर बढ़ता ही जा रहा है और हालात यह हो चले हैं कि गंभीर वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली रहने योग्य शहर नहीं रह गया है। वहीं सबसे अहम बात यह है कि इस संबंध में सरकार की कोई स्पष्ट रणनीति भी नहीं है। इस समस्या के लिए खराब हवा को दोषी ठहराया जाता है, और ग्रीन हाउस क्षेत्रों से प्रभावशाली ढंग से नहीं निपटा जा रहा है।
बेहद गौरतलब है कि यह बात न्यूयार्क में स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय के भू संस्थान के प्रमुख जैफरी सच ने कही। सच राजधानी में हुए विश्व विकास शिखर सम्मेलन में प्रमुख वक्ता थे। उन्होंने इस संबंध में और भी बातें कही। सच ने कहा यह शहर रहने योग्य नहीं है। आप यहां अपने बच्चों को बड़ा नहीं करना चाहेंगे। वायु प्रदूषण के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई ना करने के लिए गरीबी का बहाना बनाना स्वाकार्य नहीं है।
उन्होंने कहा वास्तव में लोग काफी बीमारियों से ग्रस्त हैंं। जीवन भर की बीमारियां दिल के रोग और फेफड़े के रोग उनको घेरे हुए हैं। टेरी द्वारा आयोजित तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन में वायु प्रदूषण मुख्य मुद्दा था। सच ने कहा कि दिल्ली में सर्दियों के दौरान वायु की गुणवत्ता बहुत खराब हो जाती है। मौसम संबंधी समस्या को बढ़ा देती है। पिछले वर्ष नवंबर में दो सप्ताह के लिए दिल्ली की वायु गुणवत्ता इंडेक्स लगातार खतरनाक रैंज में थी (400 – 500)।
2017 में दिल्ली में एक वर्ष में 50 दिनों से कम समय के लिए वायु की गुणवत्ता का स्तर अच्छा या संतोषजनक था। 2016 में केवल 24 दिन ही बेहतर वायु ही लोगों को मिली। सच ने कहा कि इस बात के सबूत हें कि वायु प्रदूषण हमारी सोच से भी खराब स्थिति में है। फेफड़े की बीमारी से ग्रस्त लोग बताते हैं कि उन्हें ऐसी परिस्थितियों में नही रहना चाहिए । सच ने कहा कि समस्या ये है कि सरकार के पास कोई स्पष्ट विकल्प नहीं है। अब ऐसे कई विकल्प हैं। ऐसा संभंव है कि कम कार्बन उर्जा को बनाया जाय। इलेक्टानिक वाहन सड़क पर उतारे जाएं।
अगर सरकार वायु प्रदूषण से निपटने के लिए स्पष्ट निगरानी और जवाबदेही रणनीति बनाए तो लोगों को राहत मिलेगी। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली की वायु प्रदूषण का लगभग 60 प्रतिशत शहर से बाहर से आता है। हमारे अनुमानों से यह काफी अधिक है। वायु प्रदूषण पैनल के अन्य विशेषज्ञों ने सिफारिश की है कि दिल्ली पर धयान देने के बजाय वायु प्रदूषण समस्या पर क्षेत्रीय नजरिया बनाया जाय। एक वैज्ञानिक मार्कस अमान ने कहा कि दिल्ली में अगर सभी आर्थि गतिविधियों को बंद कर दिया जाए तो फिर भी ये WHO या इंडियन स्टेंडर्ड को पूरा नही कर पाएगी।