पटना. राजनीतिक रूप से सजग माने जाने वाले बिहार में साठ से अस्सी के दशक के दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति, क्षेत्रीय दलों का उभार और वामपंथी प्रभाव बढ़ने से राजनीतिक उथल-पुथल इतनी तेज रही कि महज 29 साल में तेईस बार मुख्यमंत्री बदले गए.
नब्बे के दशक की शुरुआत में लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद बिहार में जनता दल की सरकार बनी लेकिन इस दौरान चारा घोटाला और नरसंहार की घटनाओं के कारण राजनीतिक उथल-पुथल भी देखने को मिला. वर्ष 2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के बनने तक 15 साल में छह बार मुख्यमंत्री बदले गए. हालांकि वर्ष 2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद से इस पद को स्थिरता मिली और आजादी के बाद बिहार में लंबे समय के कार्यकाल वाले वह पहले मुख्यमंत्री हो गए हैं.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री कृष्ण सिंह 31 जनवरी 1961 तक अपने पद पर रहे. वर्ष 1961 से 1990 तक के 29 वर्ष में बिहार में 23 बार मुख्यमंत्री बदले गए. बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह के निधन के बाद कांग्रेस के ही दीपनारायण सिंह को राज्य का दूसरा मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ. उन्होंने 01 फरवरी 1961 को पदभार ग्रहण किया लेकिन 17 दिन के बाद ही उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा और उनका स्थान बिनोदानंद झा ने लिया.
‘कामराज योजना’ आने के बाद झा अलग-अलग राज्य के उन आठ मुख्यमंत्रियों में से एक थे, जिन्हें कांग्रेस संगठन को मजबूत करने की जिम्मेवारी सौंपी गई. इस कारण से वह 02 अक्टूबर 1963 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कांग्रेस नेता वीरचंद पटेल और झा के मंत्रिमंडल में उप मुख्यमंत्री रहे कृष्ण बल्लभ सहाय (के. बी. सहाय) शामिल हो गए. झा की सरकार में सेकेंड इन कमांड माने जाने वाले तत्कालीन शिक्षा मंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने सहाय को समर्थन दिया. इससे 02 अक्टूबर 1963 को सहाय बिहार के चौथे मुख्यमंत्री बने और वह 05 मार्च 1967 तक इस पद पर रहे.