भारतीय मुहूर्त विज्ञान व ज्योतिष शास्त्र प्रत्येक कार्य के लिए शुभ मुहूर्तों का शोधन कर उसे करने की अनुमति देता है. कोई भी कार्य यदि शुभ मुहूर्त में किया जाता है तो वह उत्तम फल प्रदानकरने वाला होता है. अर्थात् ऐसा समय जो उस कार्य की पूर्णता के लिए उपयुक्त हो. ज्योतिषशास्त्र में प्रत्येक शुभ कार्य के लिए समय निर्धारित किया गया है. इस शुभकाल में प्रारंभ किया गया कार्य अवश्य ही पुण्य फलदायी एवं शुभकारी बताया गया है, किंतु इसी काल में ऐसा भीसमय होता है जब शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं. एक ऐसा ही काल होता है होलाष्टक जो भारतीय धर्म एवं ज्योतिषशास्त्र में मंगल कार्यों के लिए उत्तम नही माना गया है.
होलाष्टक 23 फरवरी से प्रारंभ हो रहा है, जो कि 1 मार्च होलिका दहन के साथ समाप्त होगा. अर्थात इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ करना वर्जित होगा. ज्योतिशास्त्र के अनुसार होलाष्टक केदौरान किया गया कार्य विपरीत परिणाम लेकर आ सकता है और ये पीड़ादायी एवं कष्टकारी बन सकता है. होलाष्टक के आठ दिन किसी भी ऐसे कार्य करने के लिए पूर्णत अशुभ माने जाते हैं, जोआपके जीवन में मंगलकारी माने गए हैं.
ये कार्य ना करें
नामकरण, विवाह की चर्चाएं, मुंडन, हवन, विवाह, गृह शांति, गर्भाधान, गृह प्रवेशा, गृह निर्माण, विद्यारंभ सहित अनेक शुभ कर्म. फाल्गुन माह की पूर्णिमा (1 मार्च) को होलिका दहन किया जाएगा और इसके अगले दिन 2 मार्च को धुलेण्डी (होली) पर रंग-गुलाल खेलकर खुशियां मनाई जाएगी. शास्त्रों के अनुसार होलिका दहनके आठ दिन पूर्व होलाष्टक लग जाता है. इसके अनुसार होलाष्टक लगने से होली तक कोई भी शुभ संस्कार संपन्न नहीं किए जाते. शास्त्रीय परंपरा के अनुसार होलाष्टक शुरू हो गया और अब 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्यों पर रोक लग गई है. ये शुभ कार्य धुलेण्डीके बाद ही शुरू होंगे.
यह भी मान्यता है कि होली के पहले के आठ दिनों अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक प्रहलाद को काफी यातनाएं दी गई थीं. यातनाओं से भरे उन आठ दिनों को ही अशुभ मानने की परंपरा बन गई. हिन्दू धर्म में किसी भी घर में होली के पहले के आठ दिनों में शुभ कार्य नहीं किए जाते.