प्रयागराज. प्रयागराज में पिछले साल लगे कुंभ मेले में टेंट-टिन, बिस्तर और फर्नीचर सप्लाई करने वाली कपंनी द्वारा सौ करोड़ रुपये से ज्यादा का गबन करने का सनसनीखेज मामला सामना आया है. हालांकि राहत की बात सिर्फ इतनी है कि भुगतान होने से पहले ही यह मामला उजागर हो गया है.
मेला प्राधिकरण के अफसरों ने इस मामले में कंपनी के अलावा उसके दस पार्टनर्स के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज करा दी है. अफसरों का मानना है कि एक सौ नौ करोड़ रुपये के इस घोटाले को फर्जी दस्तावेजों के सहारे अंजाम देने की कोशिश की गई थी. मेला प्राधिकरण ने इस कंपनी को अगले पांच सालों के लिए ब्लैक लिस्ट भी कर दिया है.
इस गबन में मेले से जुड़ा सरकारी अमला भी सवालों के घेरे में हैं और प्राधिकरण के तमाम कर्मचारी शक के दायरे में हैं. कहा जा रहा है कि मेला प्रशासन के कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना इतना बड़ा घोटाला मुमकिन नहीं है, क्योंकि सौ करोड़ रुपये से ज़्यादा की रकम की फाइल कई टेबल से पास होकर ऊपर तक पहुंच गई थी.
फाइलों पर तमाम कर्मचारियों के दस्तखत भी हैं. हालांकि अफसरों ने अपने मातहतों को बचाते हुए एफआईआर में उनके फर्जी दस्तखत बनाए जाने के दावे किये हैं. इस मामले में आरोपी कंपनी ने अपनी सफाई पेश की है और मेले से जुड़े अफसरों पर उत्पीडऩ के आरोप लगाए हैं. कंपनी का कहना है कि एक अरब से ज्यादा की रकम का भुगतान करने से बचने के लिए कुछ अफसर एफआईआर कराकर दबाव बनाना चाह रहे हैं.
बताया जा रहा है कि मेला प्राधिकरण अब तक लल्लू जी एंड संस को छियासी करोड़ रूपये का भुगतान कर चुका है. आरोप है कि फर्म ने एक सौ नौ करोड़ रूपये के फर्जी दस्तावेज तैयार कर उस पर मेले से जुड़े कर्मचारियों के जाली दस्तखत के साथ बिल पेश कर भुगतान पाने की कोशिश की, जिसे जांच के बाद पकड़ लिया गया. हालांकि बिल पेश होने के करीब सत्रह महीने बाद गड़बड़ी पकडऩे का दावा खुद सरकारी अमले को भी कटघरे में खड़ा करने वाला है.
कहा जा सकता है कि कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना यह मुमकिन ही नहीं है. बहरहाल पुलिस ने केस दजज़् करने के बाद इस मामले में जांच शुरू कर दी है. फर्म की तरफ से उसके सलाहकार विश्वनाथ मिश्र ने सामने आकर आरोपों को गलत बताया है. वैसे लेन देन के विवाद का केस पहले से ही हाईकोर्ट में चल रहा है.