जयपुर. राजस्थान में तीन विधानसभा सीटों भीलवाड़ा जिले की सहाड़ा, चूरू जिले की सुजानगढ़ और राजसमंद विधानसभा सीट के लिये हुये उपचुनाव में मतदाताओं ने दिवंगत विधायकों के परिजनों के प्रति पूरी सहानुभूति दिखाई है. मतदाताओं ने तीनों ही स्थानों पर दिवंगत विधायकों के परिजनों को समर्थन देकर उनके परिवारों के वर्चस्व को कायम रखा है.
वहीं बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे के गढ़ों को नहीं भेद पाये. राजसमंद सीट पहले भी बीजेपी और सुजानगढ़ तथा सहाड़ा कांग्रेस के पास थी. हालांकि अभी तक प्रत्याशियों की जीत की आधाकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन उनको मिले मत और प्रतिद्वंदी से मतों का अंतर जीत पर मुहर लगा चुका है.
सुजानगढ़ में कांग्रेस के मनोज मेघवाल जीते
सुजानगढ़ से कांग्रेस प्रत्याशी प्रत्याशी मनोज मेघवाल ने जीत दर्ज कराई है. मनोज सुजानगढ़ के पूर्व विधायक मास्टर भंवरलाल मेघवाल के बेटे हैं. मास्टर भंवरलाल मेघवाल गहलोत सरकार ने कैबिनेट मंत्री थे. वे यहां से पांच बार चुनाव जीत चुके थे. कुछ माह पूर्व मास्टर भंवरलाल मेघवाल का बीमारी के कारण निधन हो गया था. उसके कारण यह सीट खाली हुई थी. यहां बीजेपी मुकाबले में ही नहीं आ पाई और तीसरे स्थान पर फिसल गई. सुजानगढ़ में नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के प्रत्याशी सीतराम नायक दूसरे स्थान पर रहे हैं. जबकि बीजेपी प्रत्याशी खेमाराम मेघवाल तीसरे स्थान पर रहे.
सहाड़ा में कांग्रेस की गायत्री देवी ने दर्ज कराई जीत
सहाड़ा कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है. यहां के विधायक कैलाश चन्द्र त्रिवेदी का कोविड-19 की पहली लहर में कोराना संक्रमण के कारण निधन हो गया था. इससे यह सीट खाली हो गई थी. कांग्रेस ने यहां से कैलाश चन्द्र त्रिवेदी की पत्नी गायत्री देवी को ही चुनाव मैदान में उतारा. बीजेपी ने यहां उनका मुकाबला करने के लिये जाट मतदाताओं की बहुलता को देखते डॉ. रतनलाट जाट को मैदान में उतार कर कास्ट कार्ड खेलने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाई. मतदाताओं ने यहां त्रिवेदी परिवार पर फिर से भरोसा जताते हुये गायत्री देवी को जीताया है.
राजसमंद में जीती पूर्व विधायक किरण माहेश्वरी की बेटी दीप्ति
राजसमंद बीजेपी का गढ़ माना जाता है. यहां की विधायक किरण माहेश्वरी का भी कोविड-19 की पहली लहर में कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो गया था, जिसके कारण यह सीट रिक्त हो गई थी. यहां बीजेपी ने भी अपने गढ़ को बचाने के लिये सहानुभूति का कार्ड खेलते हुये किरण माहेश्वरी की बेटी दीप्ति माहेश्वरी को चुनाव मैदान में उतारा. कांग्रेस ने बीजेपी के इस गढ़ को भेदने का पूरा प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो पाई. यहां उसने दीप्ति माहेश्वरी का मुकाबला करने के लिये तनसुख बोहरा पर दांव खेला, लेकिन पार नहीं पड़ी. मतदाताओं ने माहेश्वरी परिवार पर फिर भी भरोसा जताते हुये दीप्ति को विजयी बनाया है.