नई दिल्ली। भाजपा आलाकमान उत्तराखण्ड की सियासत में जब-तब फेरबदल से तो हैरान करती ही है वहीं हर बार तमाम राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुमानों से परे एक नये चेहरे को सामने लाकर न सिर्फ अजब खेल कर देती है बल्कि तमाम अनुमानों को भी फेल कर देती है। क्योंकि चाहे वो हाल में सामने लाये गए त्रिवेन्द्र सिंह रावत हों या फिर उनके बाद तीरथ सिंह रावत और अब पुष्कर सिंह धामी। जी! इस बार भी तमाम अनुमानों को धता बता भाजपा आलाकमान ने एक सामान्य सैनिक परिवार की पृष्ठभाूमि से जुड़े पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखण्ड की कमान सौंप फिर एक बार साबित कर दिया कि भाजपा में कभी भी किसी काबिल नेता और कार्यकर्ता को कोई भी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। पार्टी काबिलियत का सम्मान करने में विश्वास करती है।
गौरतलब है कि हमेशा की तरह ही एक बार फिर भाजपा आलाकमान ने उत्तराखण्ड में एक नये चेहरे को राज्य की कमान सौंप बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों ही नही वरन तमाम बड़े नामचीन दावेदारों को को भी हैरान- पेरशान कर दिया। दरअसल भाजपा ने उत्तराखंड में एक ऐसे युवा चेहरे को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी है जो दूर-दूर तक मुख्यमंत्री पद की रेस में नहीं था। बेहद सामान्य सैनिक परिवार की पृष्ठभूमि से आने वाले पुष्कर सिंह धामी पर पार्टी ने दांव लगाया है। धामी खटीमा विधानसभा क्षेत्र से लगातार दो बार विधायक रहे हैं। ब्राह्मण और ठाकुर समुदाय के बीच संतुलन रखते हुए पार्टी ने इस कुमाऊं राजपूत को जिम्मेदारी दी है। पार्टी को उम्मीद है कि इस नए चेहरे के साथ उसे उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल होगी।
बीजेपी के एक केंद्रीय नेता के मुताबिक, तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाए रखने में संवैधानिक संकट बड़ी बाधा नहीं बन सकता था, चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय से इसकी राह निकाली जा सकती थी, लेकिन असली वजह यह थी कि तीरथ सिंह रावत केंद्रीय नेतृत्व की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए। उन्हें भी ठीक इन्हीं उम्मीदों के साथ लाया गया था कि वे युवा हैं और बेहद सामान्य पृष्ठभूमि से आते हैं। उनकी सादगी से जनता को पार्टी के प्रति आकर्षित किया जा सकेगा। लेकिन उनके विवादास्पद बयानों ने मीडिया में पार्टी की खूब किरकिरी कराई। लड़कियों की ‘छोटी-फटी जींस’ जैसे विवादित बयानों ने जनता के बीच उनकी छवि खराब कर दी थी। अपने केवल 115 दिन के कार्यकाल में वे सबको साथ नहीं रख पाए।
केंद्रीय टीम को लगातार इस बात का संदेश मिल रहा था कि अगर तीरथ सिंह रावत के नेतृत्व में चुनाव में जाने का निर्णय किया जाता है तो यह पार्टी पर उलटा पड़ सकता है। यही कारण है कि उन्हें दिल्ली बुलाकर संवैधानिक संकट की बात बताकर इस्तीफा देने के लिए कह दिया गया। जानकारी के मुताबिक, उत्तराखंड चुनावों को लेकर आरएसएस की रिपोर्ट भी पार्टी की उम्मीदों के मुताबिक नहीं है। संघ पार्टी को लगातार इस बात के लिए चेतावनी दे रहा है कि इस पहाड़ी राज्य में प्रशासन के स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार बड़ी मुसीबत का कारण बन सकता है। कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के आरोप त्रिवेंद्र सिंह रावत के समय से ही लगाए जा रहे हैं। संगठन में सभी वर्ग को साथ न ले पाने का दुष्परिणाम पार्टी को उठाना पड़ सकता है।
यही कारण है कि पार्टी ने समय रहते एक ऐसे चेहरे पर दांव लगाया जिस पर अभी तक कोई दाग नहीं है। धामी का सैनिक पृष्ठभूमि से होना भी उत्तराखंड के चुनाव के लिहाज से पार्टी को सूट कर रहा था। पार्टी को उम्मीद है कि युवा, जोशीले और युवा कार्यकर्ताओं के बीच काफी लोकप्रिय धामी पार्टी की चुनावी नैया को पार लगा सकेंगे। ठीक यही उम्मीद तीरथ सिंह रावत से भी लगाई गई थी। पुष्कर सिंह धामी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी में अनेक दिग्गजों को संतुष्ट करके साथ लेकर चलने की होगी। त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत, गणेश जोशी, अरविंद पांडेय और सतपाल महाराज जैसे अनेक दिग्गज पार्टी में मौजूद हैं। सबको संतुष्ट कर पाना धामी के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।