नई दिल्ली। टोक्यो ओलम्पिक में देश के लिए स्वर्ण पदक लाने वाले महारथी नीरज चोपड़ा जब आज खुद स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले में होने वाले उत्सव का हिस्सा बने तो अनायास ही उनके मुंह से देशवासियों के लिए एक बात निकली जो वाकई में बहुत ही अहम है क्योंकि अधिकांश लोगों में ही ऐसा वहम है जिसके चलते वो सोशल मीडिया को ही अपना सब कुछ मान चुके हैं। आज नीरज चोपड़ा ने देशवासियों से अपील की है कि “सोशल मीडिया की नकली दुनिया से बाहर आईये और अपने काम से देश प्रेम दिखाइये।“ इसके साथ ही उन्होंने अपने बचपन से लेकर आज तक के अपने जीवन के तमाम खट्टे मीठे अनुभव और यादें भी साझा कीं।
उन्होंने कहा कि बचपन में दूरदर्शन पर जब आजादी का जश्न देखता था तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था। इस बार, जब लालकिले पर खुद इस जश्न का हिस्सा बन रहा हूं, तो बता नहीं सकता कि मेरी खुशियां किस तरह सातवें आसमान को छू रही हैं। उन्होंने कहा कि ओलंपिक में देश के लिए सोना जीतकर आया, सिर्फ इसलिए नहीं, बल्कि इसलिए भी कि यह नए भारत का जश्न है, आत्मनिर्भर और स्वावलंबन की ओर बढ़ते भारत का उत्सव। नया भारत अब बड़े सपने देखता है और खुद उन्हें पूरे करने की राह बनाता है। वह चुनौतियों से जूझने की क्षमता रखता है और उन पर जीत दर्ज करने का विश्वास भी।
उन्होंने कहा कि किसी के दबाव में कुछ भी न करने लगें। वह काम करिए, जिसमें खुशी मिले। दूसरी है, खुद पर विश्वास। तीसरी अहम चीज है-धैर्य। धीरज रखना सीखिए। इसके बाद है, मेहनत। पूरे मन से लक्ष्य को समर्पित हो जाइए, कामयाबी आपके पास होगी। सोशल मीडिया पर देश के लिए प्रेम दिखाकर क्या हासिल होगा? अपने काम से देश-प्रेम दिखाइए। आप कोई छोटे से छोटा काम कर रहे हों, उसमें देश के लिए सोचिए। सोशल मीडिया नकली दुनिया है, इसके लाइक-फॉलो से खुद को मत आंकिए।लेकिन, देश में युवा साथी नए संकट के शिकार हैं, सोशल मीडिया को बहुत ज्यादा गंभीरता से लेते हैं। कुछ भी पोस्ट करते हैं, फिर सारा ध्यान इसी पर रहता है कि कितने लोगों ने उसे देखा, पसंद किया? स्टेटस पर ज्यादा लाइक और कमेंट्स आ जाएं, तो सोचने लगते हैं कि जिंदगी गुलजार है।
चाहे वास्तविक जीवन में कुछ नहीं कर रहे हों। यह बेहद खतरनाक है, इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। सोशल मीडिया जिंदगी नहीं है, न महज सोशल मीडिया से जिंदगी है। यह एक नकली दुनिया है। जीवन इतना सीमित नहीं है कि मजे लो और बस! यह बस कहीं न कहीं रुकना चाहिए। अनुशासन व काम के प्रति गंभीरता बेहद जरूरी है। बेशक और भी चीजें हैं, लेकिन सबसे पहले आपका फोकस किस पर होना चाहिए, यह सोचिए। नौजवानों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण व गंभीरता से ही बेहतर देश बन सकता है। नीरज ने कहा कि संसाधनों के मोर्चे पर जरूर कुछ कदम ठिठक जाते थे। लेकिन, अब ऐसा नहीं है। लक्ष्य स्पष्ट और उसे पाने की ललक हो, तो संसाधन हासिल करना अब मुश्किल नहीं रहा। क्या सरकार और क्या समाज, सब आपके साथ जुट जाते हैं। खेल, स्कूल-कॉलेज, सब पर यह लागू होता है। आज सुविधाएं मिल रही हैं। सबसे बड़ी बात, बच्चों को मार्गदर्शन भी अच्छा मिल रहा है। ऐसे में मेरी पीढ़ी के सामने अपने को साबित करने की बड़ी जिम्मेदारी है। लक्ष्य के प्रति जुनून व जज्बे की जरूरत है।
कामयाबी दिमाग में मत चढ़ने दो- मैं अपने युवा दोस्तों से खास बातें करना चाहता हूं। ओलंपिक मेंं जो इतिहास बना, उस पर पूरे देश को गर्व है। होना भी चाहिए। लेकिन, यह तो सफर की शुरुआत है। मेरे जैसा एक साधारण परिवार का लड़का पूरे देश का चहेता बन गया है। कामयाबी से विनम्रता-कृतज्ञता व जिम्मेदारी आती है। कामयाबी को कभी दिमाग मेंं मत चढ़ने दो। मैं भी कोशिश कर रहा हूं कि ग्लैमर से बचा रहूं। देश को आगे अभी और रिजल्ट देने हैं। लक्ष्य पर फोकस रखना है, उसे पाने के लिए नई चीजें सीखते रहना, अभी इतना ही मेरा काम है। कुछ दिन बाद आपको नॉर्मल लाइफ में लौटना है, सफलता का आनंद तो नॉर्मल होकर ही लिया जा सकता है।
एक पदक जीत लेना असली कामयाबी नहींं होती, असली कामयाबी है, उपलब्धि को दोहराना, पहले से बेहतर करना। मेरे लिए अभी एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स आने वाले हैं, वहां देश का गौरव बढ़ाया, शायद तब अपने को असली खिलाड़ी मान सकूंगा। मैं देखता हूं, बहुत से युवा जल्द-से-जल्द सफलता पाना चाहते हैं, पर धैर्य नहीं होता। कोई क्षेत्र हो, कामयाबी के लिए मेहनत करनी ही पड़ेगी। हमारे भीतर सब कुछ करने की शक्ति है। कोई बहाना नहीं दे सकते।
डनहोंने कहा कि भारतीय सेना को मैं हमेशा से पसंद करता था, ये दुनिया की सबसे अच्छी फौज है। बॉर्डर और कारगिल जैसी फिल्में देखते थे, तो फौजियों जैसा जज्बा आ जाता था। आज फौज में हूं, तो जज्बे के मायने समझ सकता हूं। देखता हूं कि परिवार से दूर रहते हुए फौजी सुबह जल्दी उठकर अपने काम खुद करते हैं, मेहनत करते हैं, खतरनाक कहे जाने वाले माहौल में भी खुश रहते हैं। बहुत शानदार योद्धा हैं। 2016 में मैंने विश्व जूनियर खेला था, उसके बाद सेना से जुड़ा। लेकिन, मैं अपने फौजी भाइयों से बहुत नीचे हूं। अनुशासन व प्रशिक्षण में वे मुझसे बहुत ऊपर है। हालांकि, सेना ने मुझे बोल रखा है कि जैसे फौजी देश के लिए लड़ता है, खिलाड़ी भी देश के लिए खेलता है, दोनों अपनी जगह देश का नाम ऊंचा करते हैं। मुझे फौजी भाइयों से अभी बहुत कुछ सीखना है।
हर कामयाबी के पीछे कई लोग होते हैं। ओलंपिक में भारत के प्रदर्शन के पीछे देश एकाकार होकर खड़ा था। मैं भी जब लौटकर घर पहुंचा और मां की आंखों में आंसू देखे, तो उनके त्याग को समझ पाया। हमें छोटी उम्र में घर से दूर भेजना उनके लिए कितना मुश्किल रहा होगा? वे जब भावुक हो गईं और मैंने उनके गले में पदक पहना दिया, तो उसकी सार्थकता दिखी। याद भी नहीं कि वो क्या-क्या बोल रहीं थीं, इमोशंस ही ऐसे थे। शायद ‘अच्छा किया बेटा’ कहा था उन्होंने। दोस्तों से बात हुई, तो उन्होंने कहा, मैंने उनका सपना पूरा किया है।….और देश कह रहा है, मैंने देश का सपना पूरा किया है।