नई दिल्ली. वर्ल्ड बैंक ग्रुप ने कहा है कि उसने देशों में इनवेस्टमेंट के माहौल पर ईज ऑफ डुइंग बिजनेस रिपोर्ट को अब प्रकाशित नहीं करेगा. इसने यह भी कहा कि यह देशों में व्यापार और निवेश के माहौल का आकलन करने के लिए नए दृष्टिकोण पर काम करेगा. वर्ल्ड बैंक का कहना है कि उसकी जांच में वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से डेटा में गड़बड़ी करने का दबाव डालने का पता चला है. इनमें तत्कालीन चीफ एग्जिक्यूटिव क्रिस्टियाना जॉर्जियेवा भी शामिल थी.
वर्ल्ड बैंक ने एक बयान जारी कर कहा कि रिपोर्ट नहीं जारी करने का फैसला इंटरनल ऑडिट रिपोर्ट्स के नैतिकता से जुड़े मामलों को उठाने के बाद लिया गया है.इनमें बैंक के पूर्व और मौजूदा अधिकारियों का आचरण शामिल है. इस बारे में लॉ फर्म विल्मर हेल ने भी एक जांच की है. विल्मर हेल की रिपोर्ट में वर्ल्ड बैंक के तत्कालीन प्रेसिडेंट जिम योंग किम की ओर से चीन के स्कोर को बढ़ाने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से दबाव डालने का हवाला दिया गया है.
चीन के डेटा प्वाइंट्स में विशेष बदलाव का था दबाव
इसमें यह भी बताया गया है कि क्रिस्टियाना ने कर्मचारियों पर चीन के डेटा प्वाइंट्स में विशेष बदलाव करने का दबाव डाला था जिससे रैंकिंग को बढ़ाया जा सके. वर्ल्ड बैंक उस दौरान चीन से फंडिंग बढ़ाने की मांग कर रहा था. क्रिस्टियाना अभी इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. हालांकि, क्रिस्टियाना ने इन आरोपों से इनकार किया है.
जानिए क्या है पूरा मामला?
वर्ल्ड बैंक की इस फ्लैगशिप रिपोर्ट में देशों को व्यापार नियमों और आर्थिक सुधारों के आधार पर रैंकिंग दी जाती है. इस रिपोर्ट को दिखाकर सरकारें इनवेस्टर्स को अपने यहां निवेश करने के लिए कहती हैं. लॉ फर्म विल्मरहेल की जांच रिपोर्ट में पाया गया कि बीजिंग ने 2017 में अपनी 78वीं रैंकिंग को लेकर शिकायत की थी और अगले साल उसे इस रैंक में और नीचे दिखाया जाने वाला था. अक्टूबर 2017 में रिपोर्ट आने के ठीक आखिरी हफ्ते पहले, वर्ल्ड बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष जिम किम और जॉर्जीवा (उस वक्त बैंक की सीईओ थीं) ने अपने स्टाफ को रिपोर्ट की मैथडोलॉजी को बदलने को कहा था, ताकि चीन का स्कोर बेहतर दिखाया जा सके. किम ने चीन के सीनियर अधिकारियों के साथ रैंकिंग के बारे में चर्चा की थी, जो इस रैंकिंग से खुश नहीं थे. फिर उसमें ये मुद्दा उठा कि इस रैंकिंग को कैसे सुधारा जाए?