स्किन पर होने वाली सामान्य बीमारी है जिसे रेड रैशेज (लाल निशान) भी कहते हैं. इनमें स्किन पर लाल-लाल दाने या चकत्ते निकल आते हैं. इनमें खुजली और कभी-कभी जलन भी होती है. आमतौर पर एलर्जिक रिएक्शन के कारण स्किन पर रेड रैशेज निकलते हैं. जब बॉडी हिस्टामाइन प्रोटीन को रिलीज करने लगती है, तो कभी-कभी सेल्स की ओर जाने वाली पतली-पतली रक्त वाहिकाओं से तरल पदार्थ निकलने लगता है. यह तरल पदार्थ स्किन की बाहरी कोशिकाओं में आकर जमा होने लगता है. इससे स्किन में रेड रैशेज या दाने उभर आते हैं. एचटी की खबर में आयुर्वेदिक एक्सपर्ट डॉ दीक्षा भावसर बताती हैं कि आयुर्वेद में इस स्थिति को शीतपित्त कहते हैं. यह मेडिकल साइंस वाले अर्टीकारिया ही है.
दीक्षा ने कहा, शीत पित्त का मतलब है कि सर्दी और गर्मी का शरीर में एक साथ प्रभाव. आमतौर पर रेड रैशेज बहुत अधिक ठंड के प्रभाव में आने पर होते हैं. इनमें शीत पित्त पर प्रभावी हो जाता है. इस स्थिति में व्यक्ति के शरीर के कुछ हिस्से या पूरे हिस्से में रेड रैशेज निकलने लगते हैं. डॉ दीक्षा बताती हैं कि रेड रैशेज आने से स्किन में बहुत खुजली होती है और कभी-कभी इससे कभी-कभी खून भी निकल आता है.
रेड रैशेज के लक्षण
स्किन पर रेड रेशेज के निशान बिच्छुओं के डंक मारने के सामान निकल आते हैं. इस स्थिति में चुभन या सनसनी की तरह महसूस होता है. जी मिचलाना, उल्टी और बुखार भी हो सकता है. रेड रैशेज निकलने पर बहुत ज्यादा प्यास लगती है. डाइजेशन प्रॉब्लम भी होता है और नमकीन, स्पाइसी खाने की चाहत होती है.
आयुर्वेद में इसका क्या इलाज है
गुरुची, हल्दी, आंवला, नीम आदि एलर्जिक रिएक्शन में फायदेमंद हैं.
पानी को थोड़ा गर्म करें. इसमें नीम के पत्ते को मिला दें. इसके बाद इस पानी से स्नान करें.
पूरे शरीर पर नारियल, सरसो या नीम तेल लगाएं.
इन घरेलू उपायों के बाद भी रेड रैशेज नहीं जा रहे हैं, तो इसका मतलब है कि यह क्रोनिक है. इसके लिए पंच कर्म चिकित्सा करने की जरूरत है.