नई दिल्ली. दक्षिण-पश्चिमी मानसून ने बीते सोमवार को देश से विदाई ले ली. लेकिन लक्षद्वीप क्षेत्र के ऊपर एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र बना हुआ है. एक और चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र दक्षिण-मध्य बंगाल की खाड़ी के ऊपर बना हुआ है. वहीं, एक ट्रफ रेखा दक्षिण-मध्य बंगाल की खाड़ी के ऊपर बने हुए चक्रवाती हवाओं के क्षेत्र से उत्तर-पश्चिम बंगाल की खाड़ी तक फैली हुई है.
इनके कारण देश के कुछ हिस्सों में भारी बारिश हो सकती है. पश्चिमोत्तर और मध्य भारत का मौसम फिलहाल शुष्क रहेगा. वहीं, उत्तर पश्चिम और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में न्यूनतम तापमान में और गिरावट की संभावना है. इधर तटीय कर्नाटक, दक्षिण आंतरिक कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश के साथ कुछ स्थानों पर भारी बारिश हो सकती है.
वहीं, निचले क्षोभमंडल स्तरों में उत्तर-पूर्वी हवाओं के बनने से दक्षिण प्रायद्वीपीय भारत में सोमवार से पूर्वोत्तर मानसून की बारिश शुरू हो गयी. इसी के साथ देश में ठंड का आगाज हो गया है. पहाड़ों पर हो रही बर्फबारी और बारिश के कारण न्यूनतम तापमान में लगातार गिरावट देखी जा रही है. दोपहर में तेज गर्मी के बाद शाम होते ही तापमान तेजी से गिर रहा है. इस बार दीपावली पर अच्छी खासी ठंड महसूस होने का अंदेशा जताया रहा है.
मानसून विभाग ने बताया कि 1975 के बाद मानसून की यह सातवीं बार सर्वाधिक विलंब से हुई रवानगी है. इससे पहले, 2010 और 2021 के बीच दक्षिण-पश्चिमी मानसून 25 अक्तूबर को या उसके बाद पांच बार 2017, 2010, 2016, 2020 और 2021 में देश से विदा हो गया है. दक्षिण-पश्चिमी मानसून की छह अक्टूबर को पश्चिमी राजस्थान और उससे सटे गुजरात से रवानगी शुरू हो गयी थी
आमतौर पर उत्तर पश्चिमी भारत से दक्षिण-पश्चिमी मानसून 17 सितंबर से विदा लेना शुरू करता है. आईएमडी के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल 28 सितंबर, 2019 में नौ अक्तूबर, 2018 में 29 सितंबर, 2017 में 27 सितंबर और 2016 में 15 सितंबर को मानसून की रवानगी शुरू हुई थी.
मौसम विभाग का कहना है कि कि इस बार उत्तर-पूर्व एशिया में कड़ाके की ठड़ पड़ सकती है. जनवरी और फरवरी में देश के कुछ उत्तरी इलाकों में तापमान तीन डिग्री सेल्सियस तक नीचे जा सकता है. मौसम की स्थिति के लिए ला नीना को जिम्मेदार बताया जा रहा है. प्रशांत क्षेत्र में ला नीना उभर रहा है. आमतौर पर इसका अर्थ है कि उत्तरी गोलार्ध में तापमान का सामान्य से कम रहना. जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक के कारा सागर में समुद्री बर्फ की कमी हो गयी है. यह पूरे उत्तर-पूर्व एशिया में कड़ाके की ठंड की ओर इशारा करता है जैसा पिछले साल सर्दियों में हुआ था.